Quantcast
Channel: जानकीपुल
Viewing all articles
Browse latest Browse all 596

सुधांशु फिरदौस की कविताएं

$
0
0

अभी परसों ही अखबार में पढ़ा कि युवा कविता के लिए दिया जाने वाला भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार इस बार किसी कवि को नहीं दिया जायेगा क्योंकि इस साल के निर्णायक अशोक वाजपेयी को इस योग्य कोई कवि नहीं लगा. मैं विनम्रता से कहना चाहता हूँ कि श्री वाजपेयी लगता है समकालीन कविता पढ़ते नहीं हैं और अपनी अनपढ़ता को उन्होंने हिंदी कविता की सीमा बना दिया. मुझे लगता है कई कवि हैं जिनकी कविताओं में उम्मीद बची हुई है. आज एक ऐसे ही युवा कवि सुधांशु फिरदौसकी कविताएं. बिना किसी नारेबाजी के कविताओं को कला माध्यम के रूप में बरतने का जो कौशल इस गणितज्ञ कवि में है वह शायद समकालीन कविता में विरल है. आज उनकी कुछ कविताएं- प्रभात रंजन  


इस शीर्षकविहीन समय में तुम्हारे नाम एक और शीर्षकविहीन कविता
      
  
      १

रात भर
मोर और कोयल में दुबोला होता रहा
मै उसके बारे में
वो मेरे बारे में
दूसरों से-
पूछता रहा


       २

लौट आई है एक तितली फूल पर बैठने से पहले
लौट आया है एक पतंगा आग में जलने से पहले

इन दिनों,दोनों मिलकर गढ़ रहे हैं
प्रेम की नई परिभाषा

       ३

अक्टूबरकीबूंदाबांदीभरीशाम
लैंपपोस्टों परटूटपड़ेहैंपतंगे

दशहरेकोविसर्जितहोपाई
दुर्गाकी प्रतिमाओंकीउदासी
संगतकररहीहैमेरीउदासीकेसाथ
(इसबारमानसून कुछज़्यादाहीअसंगतहै)
बिलकुलवैसीही
जैसेफेसबुकपरलगी
तुम्हारीतस्वीर की
दंतुरितमुस्कान


            ४

मेरीज़िंदगीकीसारीनेमतें बंदहैं
तुम्हारेएकपेचोखमभरेदस्तख़तसे
जिसकीजालसाज़ी
मैंअबतककरसका

औरतुमख़ुदहीं
बंदहोकिसीऔरकीतिजोरीमें


        ५


बादलों के पीछे छिपा है एक धुनिया
धुन रहा है अनवरत रुई
दूर दूर तक फैले हैं सूरजमुखी के खेत
बीच से एक साइकिल
दूर जाती हुई

जाड़े की खिली धूप में उनका मुरझाया हुआ चेहरा
लगता है लम्बा खिंचेगा यह इंतजार
एक तरफा प्यार


        ६


वसंत की पहली बारिश
ले गई बची खुची ठंढ़

दोपहर की धूप में सूख रहा
रात का  भीगा कंबल
     
  ७
           
जीवन एक घर है
जिसमें बेघर हूँ मैं

दरख़्त किसके ध्यान में
पत्ते किसके-
ये अकेलापन मुझे वहशी किये जा रहा है
निगल जाना चाहता हूँ पत्तियाँ, टहनियाँ
पूरा  का पूरा दरख्त



           ८

खिलते हैं एक ही मौसम में गुलमोहर और अमलतास
भौंरा किस फूल पर बैठे इस फिक्र में रहता है उदास

अकेले खाली छत पर चटाई डाल
बियर की भरी हुई जग के साथ
पैदा होने से अब तक के सारे दुःख को चाँद से बांट
जब मै थक के सो जाउंगा
मेरी कविता तुम भी सो जाना


        ९

बादलडाकिए
पेड़पहरुए

जंगलमेंअभीअभीलौटीहै गीदड़ों कीबारात
धनककेसातरंगोंसे आकाशनेलिखाहै एकप्रेमपत्र
किसके लिए?


         १०

परछाइयां
धूपकीहमसफ़रहैं
अँधेरा
जुगनुओंकायार

रात
सबकी है...
चाँद
उन सबों काजोउसेहसरतसेदेखरहेहैं



     ११

मिटचुकेहैंकदमोंकेनिशान
आगतविगतकासंज्ञान
आहिस्ता आहिस्ता मिटरहीहैप्रेमकी
कटु मधुरस्मृतियां

मेरीआत्माकेप्रकाशसे
आजतुमसबभीभिग जाओजुगनुओं
मैंनेसालोंतुम्हारेरोशनीसे
अपनेनज़रोंकाचूल्हाजलायाहै
  

  १२

विरह मौत है या मौत विरह का निकसार
शब्द अनुभव हैं या अनुभव के पार

दुःख की रात लम्बी है
सामने फिर वही पत्थर सा इंतज़ार
दूर है तुम्हारा शहर और मैं यहां
लाख कोशिश कर लूं
आज फिर होगी
आंसू आंसू भिनसार


 १३

दुःख के देवदार पर
तुम्हारे यादों की बर्फबारी
मैं टूटकर अब गिरा
तब गिरा

आज की रात आकाश में
तारे लिख रहें हैं मेरे लिए कविता
ये मीठा मीठा दर्द हीं
मेरा सरमाया है 


   १४

टहाटोह चांदनी
सफ़ेद चादर में बदल गयी है नदी की रेत
मछलियां चांदी की वरक की तरह
कभी कभी चमक कर गहरे पानी में गायब हो जा रही हैं
लहरें नाव के मांगी को पटक रही है बार बार
अपने जाल को संभाले
बीरी सुलगाते
वह देखता है नदी के साफ़ पानी में
बनती हुई अपनी परछाई



            १५


पूर्णिमा की रात
आकाश में पूरा चढ़ आया है चांद
नीचे तालाब में जी भर खिली है कुमुदिनी
शाम से ही लगा हुआ है मेंढकों का टरटराना
कदम्ब के पेड़ पर उधम मचाते मालवरो को छोड़ कर
सो गए है सभी चिड़ई चुनमुन 
बांस के मचान पर लेटे हुए
मेरे और चांद के बीच 
कभी कभी आ जा रहा है आवारा बादलो का झुण्ड
बाकी समय नींद से कोसों दूर हम दोनों 
एक दूसरे को अनवरत देखे जा रहे हैं




Viewing all articles
Browse latest Browse all 596

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>