Quantcast
Channel: जानकीपुल
Viewing all articles
Browse latest Browse all 596

'हिंदुत्व ऑर हिन्द स्वराज्य'पर रामचंद्र गुहा

$
0
0
 यू. आर. अनंतमूर्तिकी आखिरी किताब कन्नड़ में आई थी जिसमें सावरकर और महात्मा गाँधी के विचारों की तुलना थी. अब वह किताब अंग्रेजी में आई है'हिंदुत्व ऑर हिन्द स्वराज्य'. इसी  किताब के बहाने आज 'दैनिक हिन्दुस्तान'में रामचंद्र गुहाने एक अच्छा लेख लिखा है- मॉडरेटर 
===========================================

जब कन्नड़ उपन्यासकार यू आर अनंतमूर्ति दिसंबर, 2012 में 80 साल के हुए, तो मैंने इसी स्तंभ में लिखा था, ‘भारत में किसी भी अंग्रेजी लेखक की वैसी सामाजिक प्रतिष्ठा और अपने समाज व पाठकों के साथ वैसा गहरा आजीवन संबंध नहीं है, जैसा अनंतमूर्ति का है। जब मुझ जैसा कोई लेखक मरेगा, तो उसकी चर्चा शायद इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के बार तक होगी। जब अनंतमूर्ति ईश्वर के पास जाएंगे, तो उनका लेखन और धरोहर कर्नाटक के हर जिले में चर्चा का विषय होगी।इसके दो साल के भीतर अनंतमूर्ति की मृत्यु हो गई। मैं तब बेंगलुरु में था और मैंने देखा कि कन्नड़ समाज में उनके प्रति कैसा असाधारण प्रेम है। उनका पार्थिव शरीर टाउन हॉल के बाहर तिरंगे में लिपटा रखा था। श्रद्धांजलि देने के लिए कतार में हजारों लोग खड़े थे- छात्र, शिक्षक, अभिनेता, गृहिणियां और जीवन के अन्य तमाम क्षेत्रों से आए लोग।

अनंतमूर्ति अपने दुश्मनों की वजह से भी जाने जाते थे, इसलिए उनकी मृत्यु की खुशी मनाते हुए भी कई बैठकें हुईं, जिन्हें उन हिंदुत्ववादी समूहों ने आयोजित किया था, जिनकी हिंसा और कट्टरता के अनंतमूर्ति विरोधी थे। अपने आखिरी महीनों में अनंतमूर्ति ने कन्नड़ में एक छोटी-सी किताब लिखी थी, जिसमें उन्होंने वीर सावरकर और महात्मा गांधी के विचारों की तुलना की थी। अब दो साल बाद इसका कीर्ति रामचंद्र और विवेक शानबाग द्वारा किया गया अंग्रेजी अनुवाद छपा है। हिंदुत्व ऑर हिंद स्वराज  संक्षिप्त किताब है, जिसके जरिये अनंतमूर्ति ने अपने मित्रों, प्रशंसकों, संदेही लोगों और आलोचकों को संबोधित किया है। इस किताब को उस आखिरी विवाद के संदर्भ में देखा जाना चाहिए, जिसमें अनंतमूर्ति शामिल हुए थे। इसका ताल्लुक नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरने से है। नवंबर, 2013 में अनंतमूर्ति ने एक टीवी चैनल पर कहा, ‘मैं ऐसे देश में नहीं रहूंगा, जिस पर नरेंद्र मोदी राज करें। जब मैं नौजवान था, तो मैंने प्रधानमंत्री नेहरू की अक्सर आलोचना की, लेकिन उनके समर्थकों ने मुझ पर हमला नहीं किया। उन्होंने मेरे विचारों का हमेशा सम्मान किया। मोदी के समर्थक अब फासीवादियों की तरह व्यवहार कर रहे हैं...।

इस टिप्पणी से नरेंद्र मोदी के अनेक मुखर समर्थकों में गुस्सा फैल गया। कुछ ने अनंतमूर्ति को पाकिस्तान या किसी और देश जाने के लिए मुफ्त हवाई टिकट देने का प्रस्ताव किया। कुछ ने उनके पुतले जलाए, तो कुछ ने उन्हें हत्या की धमकियां दीं, जिनकी वजह से उनके घर के बाहर पुलिस का पहरा लगा दिया गया। जब भाजपा चुनाव जीत गई और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए, तो अनंतमूर्ति ने अपने बयान में कुछ सुधार किया। उन्होंने कहा कि वह कुछ ज्यादा भावुक होकर ऐसा कह गए थे और वह भारत छोड़कर कहीं नहीं जा सकते। लेकिन नरेंद्र मोदी के बारे में उनके विचार अब भी वही हैं। मोदी एक मजबूत भारत चाहते हैं, जबकि वह एक नरम भारत चाहते हैं। इस भेद को किताब में स्पष्ट किया गया है। यह किताब वास्तव में राष्ट्र, लोकतंत्र और विकास के बारे में चिंतन है। यहां अनंतमूर्ति अपने राजनेताओं की आत्ममुग्धता के बारे में लिखते हैं, ‘मोदी जैसे लोग एक गुंबद में रहते हैं, जहां उनकी अपनी आवाज ही उनके पास बार-बार लौटकर आती है। और यह कोई नई बात नहीं है। कांग्रेस के नेता भी यही करते रहे हैं।सात, रेसकोर्स रोड में प्रधानमंत्री या दस, जनपथ में कांग्रेस अध्यक्ष या फिर राज्यों के मुख्यमंत्री अपने-अपने बंद क्षेत्रों में रहते हैं। चाहे वह घर हो या भीड़ जुटाकर की गई चुनावी रैलियां, वहां हमारे ये नेता सिर्फ अपनी प्रशंसा और चाटुकारिता सुनते हैं, कभी अपनी आलोचना नहीं सुनते।

अनंतमूर्ति ने अपनी किताब में यह दिखाया है कि सावरकर का लेखन कार्रवाई का आह्वान करता है, जबकि गांधी लोगों से संवाद करते हैं। सावरकर उग्र भावुक स्वर में अपने पाठकों से बात करते हैं, जबकि गांधी आत्मीय ढंग से संवाद करते हैं। अनंतमूर्ति जब युवा थे, तब वह राममनोहर लोहिया के प्रशंसक थे, लेकिन लोहिया के वारिसों के प्रति उनकी राय बहुत अच्छी नहीं है। वह पहचान की राजनीति के खतरों से वाकिफ हैं। उनका कहना है कि आस्था और जातीय अस्मिता पर जोर इंसान के सारे नैतिक विवेक को खत्म कर देता है। वह पार्टियों और विचारकों द्वारा आस्था व जातीय अस्मिता को राजनीति में महत्व देने को लेकर चिंतित दिखाई देते हैं।

हिंदुत्व और हिंद स्वराज अनियंत्रित विकास और उपभोक्तावाद के पर्यावरण पर बुरे असर की भी बात करती है। हमारे वक्त में खदानों, बांधों, बिजलीघरों और सैकड़ों चमकदार शहरों ने राक्षसी रूप धारण कर लिया है। बिना छाया की सड़कें, जिन्हें पेड़ काटकर चौड़ा किया गया है; नदियां, जिन्हें फाइव स्टार होटलों के फ्लश टैंक भरने के लिए मोड़ दिया गया है; पहाड़ियां, जो कभी आदिम देवताओं का निवास थीं, वे खनन की वजह से उजाड़ हो गई हैं। बाजारों में और पेड़ों पर कहीं चिड़िया नजर नहीं आती। किताब के अंतिम हिस्से में वह लिखते हैं कि मोदी के विकास के जोश में वातावरण और ज्यादा कारखानों के धुएं से भर गया है। प्रकृति की गोद में रहने वाले आदिवासियों के लिए कोई जगह नहीं है। तेज विकास के घमंड में अत्यधिक उपभोग से विचलित इंसान बदलाव की मांग करेगा। अगर नहीं, तो यह धरती बोलेगी।

ये बहुत मार्मिक और प्रभावशाली शब्द हैं, हालांकि मैं इनमें कुछ जोड़ना चाहूंगा। मोदी के पहले भी सभी कांग्रेस सरकारें व प्रधानमंत्री पर्यावरण और आदिम जातियों के प्रति वैसे ही उदासीन थे, इसलिए किसी एक पार्टी या नेता को दोषी नहीं कहा जा सकता। इस मायने में अनंतमूर्ति मुझे इंडोनेशियाई विद्वान बेनेडिक्ट एंडरसन की याद दिलाते हैं, जिनका दिसंबर, 2015 में निधन हुआ। एंडरसन इतिहासकार और वैज्ञानिक थे, जिनकी साहित्य में गहरी दिलचस्पी थी और अनंतमूर्ति लेखक थे, जिनकी इतिहास व राजनीति में दिलचस्पी थी। एंडरसन राष्ट्रभक्ति व संकीर्णता के बीच फर्क की बात करते रहे, तो अनंतमूर्ति भी यह पूछते हैं कि क्या हम अपनी उग्र राष्ट्रभक्ति में छिपी बैठी दुष्टता की पहचान कर सकते हैं या नहीं?

सावरकर की किताब के संदर्भ में अनंतमूर्ति प्राचीन भारत के गौरवगान की बात करते हैं। वह कहते हैं कि सावरकर एक दोषरहित हिंदू अतीत की बात करते हैं, जो कि एक काल्पनिक दुनिया है और जिसकी जैसी की तैसी नकल करना हमारा काम है। लेकिन वह कहते हैं कि यथार्थ ऐसा नहीं है। बुद्ध ने अपने चारों ओर फैले व्यक्तिगत और सामाजिक दुख को देखा था। महाभारत  पढ़ने पर समझ में आता है कि तब भी वे सारी बुराइयां थीं, जो आज मौजूद हैं। अनंतमूर्ति भारतीय गणराज्य से प्रेम करते हैं, लेकिन वह उसकी कमियों को भी पहचानते हैं- महिलाओं और दलितों के दमन, आदिवासियों के शोषण, राजनीति के भ्रष्टाचार को। उनकी राष्ट्रभक्ति में इन कमजोरियों के लिए शर्म भी शामिल है, जो उन्हें गांधी, अंबेडकर और जयप्रकाश नारायण जैसे देशभक्तों से जोड़ती है और सावरकर, गोलवलकर और नरेंद्र मोदी जैसे अति-राष्ट्रवादियों से अलग रखती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



Viewing all articles
Browse latest Browse all 596

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>