प्रचण्ड प्रवीर विश्व सिनेमा पर सीरिज लिख रहे हैं. यह दूसरी क़िस्त है 'हॉरर'फिल्मों पर. इस लेख में न सिर्फ कुछ महान हॉरर फिल्मों का उन्होंने सूक्ष्म विश्लेषण किया है बल्कि शास्त्रों के भयानक रस के आधार पर भी उन्हें देखने का प्रयास किया है. सिनेमा और रस सिद्धांत का यह मेल अगर चलता रहा तो हिंदी में सिनेमा पर एक नायाब किताब बन जाएगी- मौलिक. जानकी पुल अगर अब तक नहीं टूटा है ऐसे ही मौलिक लेखकों के लेखन एक दम पर. समय निकाल कर न सिर्फ लेख पढ़िए बल्कि इन फिल्मों को देखने का समय भी निकालिए. अब देखिये न, मैंने तो अशोक कुमार की फिल्म 'महल'तक नहीं देखी है- प्रभात रंजन
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इसलेखमालामेंअबतकआपनेपढ़ा:
- भारतीयदृष्टिकोणसेविश्वसिनेमाकासौंदर्यशास्त्र: http://www.jankipul.com/2014/07/blog-post_89.html
इसीमेंदूसरीकड़ीहैभयानकरसकीविश्वकीमहानफिल्में।
अबआगे:-
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भयावहफिल्मोंकाअनूठासंसार
फिल्मोंकापारंपरिकअध्ययनफिल्मोंकेकथानककेप्रकारों की भिन्नतापरआधारितहोतीहैजैसेकिरहस्यप्रधान, संगीतप्रधान, वैज्ञानिकफंतासी, प्रेमकहानीवगैरह। हालांकि गोदार्दसरीखेनिर्देशकफिल्मोंकोपूरीतरहकलामाननेसेइनकारकरतेहैं, औरइसेजीवनऔरकलाकेबीचएकनएतरहकाअभिव्यक्तिकहकरसंबोधितकरतेहैं। इस लेखमाला में प्राचीनभारतीयसौंदर्यशास्त्रोंकेसिद्धांतसेहमफिल्मोंकारसकेअनुसारअध्ययनकरेंगे। इसतरहसेकथानककेदांव-पेंच, तकनीककीउत्कृष्टताऔरनवीनता, रंगोंकाखूबसूरतप्रयोग, हमारीचर्चामेंवरीयतामेंनहींहोंगे। हमारेअध्ययनकाकेंद्रबिंदुस्वयंकीसंवेदनाऔरअनुभूतिहै।
सन१९४९मेंबॉम्बेटाकीजकीफिल्मआयीथी– महल! अशोककुमारऔरकमालअमरोहीकीइसफिल्मनेलतामंगेशकरऔरमधुबालाकोस्थापितकरदिया। यहहिन्दी फिल्मकईमायनोंमेंडरावनीथी। इसयादगारफिल्मकीउल्लेखनीयशुरुआतनेपथ्यमेंएकअधेड़आदमीकीबुलंदकर्कशसीआवाज़सेहोतीहै-
"तीसबरसपहले, बरसातकीइकतूफानीरातथी...(आँधी-तूफ़ानकाशोर, दृश्यपटलपरतूफ़ानीरातमेंएकमहल..) इलाहाबादकेनजदीकनैनीरेलवेस्टेशनसेठीकदोमीलकेफासलेपर, जमनाकेउसपार‘संगमभवन’ नामकीयेआलीशानइमारतमुद्दतोंसेवीरानऔरलावारिसपड़ीहै।(तभीमहलकेप्रवेशद्वारसेएकबरसातीऔरहैटपहनेएककालासायाअन्दरजातानजरआताहै) सुनाजाताहैकिबरसातकीडरावनीरातोंमेंजबमूसलाधारबारिशहोतीहैतोआधीरातकोएककश्तीकहींसेआकरइसमहलकेसामनेजमनाकेदरमियानडूबजातीहैऔरमहलसेकिसीकेरोनेकीआवाजेंआनीलगतीहै।इसीलिएलोगइससेखौफखानेलगेहैंऔरइसेमनहूससमझतेहैं...मगरइसउजाड़महलकेटूटे-फूटेक्वार्टरमेंएकबूढ़ामालीअबतकरहताहै।इसीबूढ़ेमालीकीबयानकीहुयीएकअजीबकहानीइसमहलकेमुताल्लिकमशहूरहै- यहाँमोहब्बतकाबड़ाहीदर्दनाकवाकयागुजराहै..।
http://www.youtube.com/watch?v=fWECBUQtLWU&list=PL2B2640EBBC9BC383
इसरहस्यमयीऔरभयावहउद्घोषणाकेउपरांत, फिल्ममेंनिर्जनमहलमेंअँधेरीतूफानीरातमेंकिसीलुकती-छुपतीलड़कीकागाया‘आयेगाआनेवाला’सुनकरअशोककुमारदहशतमेंपड़जातेहैंऔरयहाँतकपरदेकेसामनेबैठासुरक्षितदर्शकभी!
http://www.youtube.com/watch?v=fWECBUQtLWU&list=PL2B2640EBBC9BC383
इसरहस्यमयीऔरभयावहउद्घोषणाकेउपरांत, फिल्ममेंनिर्जनमहलमेंअँधेरीतूफानीरातमेंकिसीलुकती-छुपतीलड़कीकागाया‘आयेगाआनेवाला’सुनकरअशोककुमारदहशतमेंपड़जातेहैंऔरयहाँतकपरदेकेसामनेबैठासुरक्षितदर्शकभी!
यहाँएकगौरकरनेवालीदो बातेंआतीहैं। पहली- इससे पहले की भय का अनुभव हो भय का बीज बहुत से रूपों में बोया जा चुका था, जैसे कि निर्जन महल, तूफानी रात, महल का खौफनाक इतिहास। दूसरी- कहानीकानायककिसीअनिष्टकीआशंकासेडररहाहै, लेकिनदेखनेवालाक्योंडरजारहाहै? यहीसौन्दर्यशास्त्रकाप्रमुखप्रश्नहै– वहभयजोफिल्मकेनायककाहै, वहभयजोकिसीवास्तविककारणोंसेदर्शककेअन्दरनहींहै, उसीभयकाआभिर्भावकेवलफिल्मदेखनेसेदर्शकअन्दरक्योंहोरहाहै?
भारतीयप्राचीनसौन्दर्यशास्त्रकेअनुसारमूलतःचाररसहैं:- श्रृंगार, रौद्र, वीरऔरवीभत्स। हास्यरसकीउत्पत्तिश्रृंगारसे, कारुण्य रसरौद्ररससे, अद्भुत रसवीररससे, औरभयानक रसवीभत्सरससेउत्पन्नहोताहै। कोईभीनाटककिसीएकरसकानहींहोसकता। एकसमयमेंदोरसकास्वादनहींलियाजासकता। हर रसकेसाथस्थायीभावजुड़ेहोतेहैं। इसकीविस्तृतचर्चाहमआगेकेलेखोंमेंकरतेरहेंगे। फिलहालइतनाजानलेंकिभयानकरसकेसाथभयस्थायीभावजुड़ाहोताहै, औरवीभत्सरसकेसाथजुगुप्सा। भयानक रस जुगुप्सा के साथ जुड़ा हुआ होता है।
सैद्धांतिक रूप से जिनकारणों(याविभाव) सेभयउत्पन्नहोसकताहैउनमेंप्रमुखहैं– अप्रियडरावनीआवाजें, भूत-प्रेतकेदर्शन, उल्लूऔरसियारकीअसमयआवाज़, निर्जनघरयावनमेंरहना, किसीप्रियकोमृत्युकेसमीपदेखना, आसन्नमृत्युयाउसकीचर्चा!
केवलकिसीकारणसेभयकेभावउत्पन्नहोनेसेदर्शककोभयानकरसकीप्राप्तिनहींहोती। लेकिनजबयहीभावसेदर्शककेहृदयमेंऐसेझंकृतहोनेलगे, किदर्शकअपनीसुध-बुध, अपनीदशाखोकरउसरसकेस्वादमेंखोजाये, तभीरसकीप्राप्तिहोतीहै। प्राचीनसाहित्यमेंरसशब्दकाप्रयोगखट्टा, मीठायानमकीनकेस्वाद, किसीखाद्यतरलपदार्थ, इच्छा, शक्ति, रासायनिकअभिकारक, पौधोंमेंबहनेवालीजीवनदायनीधारासेलेकरजहरतककेलिएहोतारहाहै। रसकीअवधारणाभीइसीजटिलताकोसमाहितकियेसमस्तअर्थोंकोसहेजेहुयेहै।
सैद्धांतिक रूप से जिनकारणों(याविभाव) सेभयउत्पन्नहोसकताहैउनमेंप्रमुखहैं– अप्रियडरावनीआवाजें, भूत-प्रेतकेदर्शन, उल्लूऔरसियारकीअसमयआवाज़, निर्जनघरयावनमेंरहना, किसीप्रियकोमृत्युकेसमीपदेखना, आसन्नमृत्युयाउसकीचर्चा!
केवलकिसीकारणसेभयकेभावउत्पन्नहोनेसेदर्शककोभयानकरसकीप्राप्तिनहींहोती। लेकिनजबयहीभावसेदर्शककेहृदयमेंऐसेझंकृतहोनेलगे, किदर्शकअपनीसुध-बुध, अपनीदशाखोकरउसरसकेस्वादमेंखोजाये, तभीरसकीप्राप्तिहोतीहै। प्राचीनसाहित्यमेंरसशब्दकाप्रयोगखट्टा, मीठायानमकीनकेस्वाद, किसीखाद्यतरलपदार्थ, इच्छा, शक्ति, रासायनिकअभिकारक, पौधोंमेंबहनेवालीजीवनदायनीधारासेलेकरजहरतककेलिएहोतारहाहै। रसकीअवधारणाभीइसीजटिलताकोसमाहितकियेसमस्तअर्थोंकोसहेजेहुयेहै।
The Cabinet of Dr Caligari दुनियाकीपहलीमहानभयानकफिल्मथी। यहश्वेत-श्याममूकफिल्मसन१९२०मेंजर्मनीकेचित्रकारोंऔरप्रबुद्धलोगोंकेसौजन्यसेबनीथी। इसफिल्ममेंदोमित्रऔरउनमेंसेएककीमंगेतरकीकहानीहै। डॉक्टरकैलिगरीनामकाएकआदमीमेलेमेंअपनेजमूरेकेद्वारालोगोंकाभविष्यबताताहै। यहनींदमेंचलनेवालेवालाज़मूरा कैलिगरी केएकताबूतमेंसोयाकरताहै, औररात के घोरअँधेरेमेंलोगोंकीहत्याएँकरताफिरताहै। इसफिल्मकीखासियतहैआरी-तिरछीरेखाओंसेबनीडरावनीकलात्मक पृष्ठभूमि। रेखाओंसेबनेचित्रसेशहर, मेले, घरऔर टेढे-मेढेरास्तोंकीकल्पनाकरना, जमूरेका मेक-अप औरपहनावा, अभिनेताओं के परछाईयोंकाइस्तेमाल, औरअभिनेताओंकेहाव-भाव।
अँधेरेदृश्यऔरपरछाइयोंसेडरपैदाकरनेकीदूसरीमहानफिल्मरहीसन१९२२मेंबनीजर्मनफिल्म– Nosferatu (नोसफेरातु)। ब्रैमस्टोकरकी‘ड्रैकुला’परआधारितयहफिल्मबिनाउपन्यासकेअधिकारोंकोख़रीदेबनायीगयीथी, इसलिएकथानकमेंकईपरिवर्तनकियेगए। ड्रैकुलाकानामबदलकरनोसफेरातुकरदियागया। इसकेनिर्देशक‘मुर्नाओ’इसफिल्मऔर‘sunrise: A song of two humans (1929)’ केकारणफिल्मइतिहासमेंअमरमानेजातेहैं। ड्रैकुलाकेभयानककथानककेबादउसेप्रभावीढंगसेफिल्मानेकेलिएनिर्देशककीकल्पनाशीलतालाजवाबरही। नोसफेरातुकेकिलेतकपहुँचानेवालेतांगेकेकोचवान, यहाँतककिउसमेंजुतेघोड़ेभीअपनेखुरोंतककालेकपड़ोंमेंढंकेथे, औरअजबसीतेजचालमेंचलनेवालेथे। नोसफेरातुकीवेशभूषा, उसकेलम्बेनाखून, बड़ीभयानकआँखें, चलनेकातरीका, औरघूरनेकाअंदाज़इतनाप्रभावशालीरहाकिप्रसिद्धजर्मननिर्देशक‘वर्नरहरज़ोग’नेविख्यातअभिनेता‘क्लाउसकिन्सकी’केसाथमिलकरश्रद्धांजलिकेतौरपरNosferatu The Vampyre (1979) केनामसेरीमेकबनायीं, जोकिएक बेहदखूबसूरतफिल्महै। तथाकथितनोसफेरातुकोरोशनीकेडरकोदर्शानेकेलिएनोसफेरातुकीताबूतकिलेकेतहखानेमेंछुपीथी। मृत्युसेजुड़ेहोनेकेभावकेलिएइसतहखानेमेंरखेताबूतकेपल्लेसड़ेहुएथेऔरजमीनमेंबेतरतीबघासउगेहुएथे। हाँ, जब'ड्रैकुला'पर ही बनीबेलालुगोसीद्वाराअभिनीतअमेरिकीफिल्मDracula (1931) मेंआयी, तबवहकोहरे, स्पेशलइफ़ेक्ट, संवाद, मूलकहानीसेजुड़ावकेकारणबेहदसफलरही। इसमेंड्रैकुलादिखनेमेंइतनाभयावहनहींथा, परचेहरेपरकुटिलताऔरसंवादइसफिल्मकीजानरहे।
दर्शकोंमेंभयपैदाकरनेकासाधारणफार्मूलाजोआमतौरपरदेखने को अक्सर मिलताहै– सरकटीलाश, खूनमेंलथ-पथचेहरा, आँखों की पुतलियों का बदला रंग, सुनसानघरमेंअचानकरोशनीकाआना-जाना, तीखेऔजारोंसेअंग-भंगदिखाना, चीजोंकोहवामेंतैरना, अचानकसेपीछेसेकिसीकाआनाऔरअनचाहीजोरोंकीचौंकादेनेवालीतीखीआवाज़! थोड़ीशांतिकेबादअचानकचौंकानेकेसाथ, आवाज़कीकर्कशताएकतरहकाचिरपरिचिततरीकाटीवीऔरफिल्मोंमेंदिखायाजातारहाहै। इनसबकेपीछेमूलअवधारणायहहैकिहमारेआस-पासकेवातावरणमेंअपरिचितस्थितियावस्तुअप्रत्याशितढंगसेसामनेआजाए, जिससेहमेंहानिकीआशंकाहोतोहमेंभयमहसूसहोगा। लेकिनफिल्मकारइनसेकहींआगेगए। उन्होंनेभयकेसिद्धांतकोसमझाऔरअनोखेप्रयोगकिये।
रूपसज्जासेभयावहतालानेकेलिएThe Phantom of The Opera (1925) विशेषतौरपरउल्लेखनीयहै। इसफिल्ममेंएकअज्ञातनकाबपोशसंगीतकारएकऑपेराकलाकारकाअपहरणकरकेऑपेराहाउसकेतहखानेमेंबनेडरावनेकमरेमेंरखताहै। भयावहफिल्मोंकास्वर्णकालतीसकेदशककोकहाजासकताहै। इसमेंबनीअमेरिकीनिर्देशकजेम्सह्वेलकीचारप्रसिद्दफिल्मेंFrankenstein (1931), The Old Dark House (1932), The Invisible Man (1933), औरBride of Frankenstein (1935) महत्वपूर्णहै। एकअजबबातरहीकिअपनीडरावनीफिल्मोंसेऊबकरजबउन्होंनेदूसरीतरहकीफिल्मेंबनानीशुरूकी, तब उनकाकैरियरडूबगया। अंतमेंसन1957मेंघोरनिराशामेंउन्होंनेतरणतालमेंडूबकरआत्महत्याकरली।
डराने के लिये विशिष्ट सेट, वेशभूषा, चाल ढाल जैसे विभावों का प्रयोग करने वाली Frankenstein और Bride of Frankenstein इनमें से अविस्मरणीय फिल्में हैं। मेरी शेली के उपन्यास पर आधारित यह फिल्म 'फ्रैंकेन्सटाइन'नामक वैज्ञानिक द्वारा मुर्दा शरीरों से जीवित प्राणी बनाने के प्रयास पर है। किन्हीं गलतियों से प्रयोग में जीवित प्राणी में एक खूनी का दिमाग लग जाता है और यह प्राणी एक खतरनाक दानव निकलता है। महात्वाकांक्षी वैज्ञानिक की पहाड़ी पर बनी प्रयोगशाला, पवनचक्की, मॉन्सटर की रूप रेखा, चाल - यह फिल्म The Cabinet of Dr Caligari के भय के विभाव से प्रभावित तो थी ही, पर इसकी बेहतरीन मार्केटिंग और अविश्वसनीय सफलता से अनेकों भयानक फिल्मों को प्रभावित किया। इसके कई आधिकारिक- गैर आधिकारिक उत्तर फिल्में यानि सीक्वेल बने। महान निर्देशक अॉरसन वेल्स ने जब काफी कम लागत में Macbeth (1948) बनायी, तब मैकबेथ का महल का डिजाइन 'फ्रैंकेन्सटाइन'की पहाड़ी पर बनी प्रयोगशाला जैसा रखा। कई मायनों में Bride of Frankenstein पहली फिल्म से बढ-चढ कर है। इसमें खतरनाक मॉन्सटर वैज्ञानिक को अपने लिये एक दुल्हन बनाने के लिये बाध्य कर देता है। 'फ्रैंकेन्सटाइन'के मॉन्सटर की दुल्हन की वेशभूषा, केशसज्जा भी मॉन्सटर के तरह ही बेहद सराहनीय रही।
इसीदौरमेंबनीअन्यअमेरिकीफिल्में– जैसेDracula (1931), Dr Jekyll & Mr Hyde (1931), Mummy (1932), King Kong (1933), और The Black Cat (1934) भीबेहदसफलऔरचर्चितरहीं, दर्शकोंकोडरानेमेंकामयाबरहीं।
महाननिर्देशककार्लड्रेयरकीजर्मन-फ्रेंचफिल्मVampyr (1932) नेडरावनीफिल्मोंकेनएआयामऔरमानकगढ़े। दुनियाकेमहानतमनिर्देशकोंमेंसेएककार्लड्रेयरनेभयकेलिएकईविचित्रप्रयोगकिये। जैसेबैठेहुएनायकसेउसकीछविकानिकलना(जोआत्माहैयाउसकाचिंतन– यहठीकठीककहनामुश्किलहै) औरताबूतमेंअपनीहीलाशकोदेखना, एकलंगड़ेचौकीदारकीछायाकानिकलकरसीढियाँचढ़नाऔरवापसयथास्थानआजाना, ताबूतमेंपड़ीलाशकेनजरियेसेआकाशकोदेखना, जैसेकईप्रयोगदर्शकोंकेअवचेतनपरगहराप्रभावडालजातेहैं। कईमनोवैज्ञानिकोंऔरशोधकर्ताओंनेइसफिल्मकीतरहतरहसेव्याख्याकीहै।
http://www.youtube.com/watch?v=GZDCurPnFyg; http://www.youtube.com/watch?v=b2ub9_wkYpc
http://www.youtube.com/watch?v=GZDCurPnFyg; http://www.youtube.com/watch?v=b2ub9_wkYpc
भूत-प्रेत या चुड़ैलों को फिल्मों दर्शाने के लिये तीन बेहतरीन फिल्मों के दृश्य अविस्मरणीय हैं। शेक्सपीयर के नाटक मैकबेथ पर आधारित अॉरसन वेल्स की 1948 में बनी Macbeth (1948) में बनी खौफनाक चुड़ैलें जो वू-डू से मैकबेथ को साथ-साथ बरबाद भी करती जाती हैं। धुयें से भरी पृष्ठभूमि पर सीधी रूखे बालों वाली मनहूस तीन बुढियाँ का चरित्र मूल नाटक से थोड़ा परिवर्तित कर दिया गया। इसी नाटक पर बनी जापानी निर्देशक अकिरा कुरोसावा की Throne of Blood (1957) में तीन चुड़ैलों के बजाये चरखा चलाती भूत का रोंगटे खड़े देने वाला दृश्य किसी की रातों की नींद छीन सकता है। महान जापानी निर्देशक केंजी मिजोगुची की श्वेत-श्याम Ugetsu (1953), जिसमें में गेइशा नृत्य के दौरान दुष्ट नृत्यांगना के मृतक पिता का पैशाचिक गायन जो डरावने मुखौटों के जरिये सुनाई देता - बिना किसी विशेष साज सज्जा के, केवल आवाज की उतार चढाव, वाद्य संगीत और अभिनय से बेहद डरा देने वाला बन पड़ा है।
फिल्म इतिहास में अल्फ्रेड हिचकॉक एकमात्र एेसे निर्देशक रहे जो बिना भूत-पिशाच, काल्पनिक कथानकों के, हमेशा रहस्य, हत्या, अपराध, और मानव मन के भय से जुड़ी फिल्में बनाते रहें। दिलचस्प कथानकों, बेहतरीन साउंडट्रैक, विनम्र संवाद शैली से सजी उनकी कई कामयाब फिल्मों से दो फिल्में Psycho (1960) और The Birds (1963) भयानक रस की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण हैं। फिल्म Psycho में मोटल मे पास बना विचित्र सा घर, निर्जन अॉफिस में मरे पक्षियों में भूसा भर के सजा कर रखने वाले मालिक, रहस्यमय हत्या के दौरान पार्श्व संगीत, लगभग सभी फिल्म प्रेमियों ने दसियों बार देख-सुन रखा है। माइकल पॉवेल की Peeping Tom (1960) का कथानक इस बात के इर्द गिर्द घूमता है कि हत्यारे का मानना होता है दुनिया की सबसे डरावनी चीज खुद की आसन्न मौत है। हत्यारा उस भय को अपने कैमरे में कैद करना चाहता है और कई हत्यायें करता है। आलोचकों ने इस फिल्म की धज्जियाँ उड़ा दी और इस निर्देशक का कैरियर खत्म हो गया। करीब बीस साल बाद यह महान फिल्मों मे शामिल कर ली गयी। भयानक रस की दृष्टि से The Birds बहुत गौर करने लायक है। इस फिल्म के खत्म हो जाने तक चिड़ियों का नगर निवासियों पर हमले का कारण पता नहीं चल पाता है। केवल मासूम सी लगने वाले चिड़ियों का समूह अचानक भय पैदा करने लगता है। एक दृश्य में चिड़ियों के हमले के बाद एक लाश की आँखें फूटी हुयी रहती है और खिड़की का शीशा टूटा दिखायी देता है। इसमें भय से तनिक देर के लिये अभिनेत्री की आवाज चली जाती है और उसके साथ तेज दौड़ता कैमरा क्षणिक विभीषिका को दीर्घ कर देता है।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कहानी मोनिहारा पर आधारित सत्यजीत राय की Teen Kanya (1961) – Monihara में गहना के मोह में फँसी पिशाचिनी का फिल्मांकन देखने लायक है। इंगमर बर्गमैन की Hour of the wolf (1968) के एक भयानक दृश्य में एक पात्र अपने चेहरे पर से अपनी चमड़ी, यहाँ तक कि अपनी आँखें निकाल कर टेबल पर सहजता से निकाल कर रख देता है, मानों वह चश्मा जैसी मामूली वस्तु हो।
भय की पराकाष्ठा तब होती है जब स्वयं के अंदर ऐसी आत्मविस्मृति पैदा हो जाये कि एक साधारण चीज भी भय पैदा कर दे। इसके लिये सर कटी लाश, हत्या या भूत-पिशाच के बजाये सड़क पार करने की मामूली सी घटना भी भयावह लगने लगे। ऐसा करने में कामयाब हुयी रोमन पोलांस्की की Rosemary’s Baby (1968)। एक नवविवाहित दंपत्ति नये घर में जब रहने आता है, तब विचित्र पड़ोसियों और पति की कुटिलताओं वह शैतानी ताकतों से गर्भवती हो जाती है। हर तरफ से अकेली पड़ती जा रही रोजमेरी अपनी होने वाली संतान से किस तरह पेश आये - यह परिस्थिति, अभिनेत्री के कौशल और निर्देशक की दूरदर्शिता से यह बहुत ही असहज कर देने वाली भयावह फिल्म है।
भय की पराकाष्ठा तब होती है जब स्वयं के अंदर ऐसी आत्मविस्मृति पैदा हो जाये कि एक साधारण चीज भी भय पैदा कर दे। इसके लिये सर कटी लाश, हत्या या भूत-पिशाच के बजाये सड़क पार करने की मामूली सी घटना भी भयावह लगने लगे। ऐसा करने में कामयाब हुयी रोमन पोलांस्की की Rosemary’s Baby (1968)। एक नवविवाहित दंपत्ति नये घर में जब रहने आता है, तब विचित्र पड़ोसियों और पति की कुटिलताओं वह शैतानी ताकतों से गर्भवती हो जाती है। हर तरफ से अकेली पड़ती जा रही रोजमेरी अपनी होने वाली संतान से किस तरह पेश आये - यह परिस्थिति, अभिनेत्री के कौशल और निर्देशक की दूरदर्शिता से यह बहुत ही असहज कर देने वाली भयावह फिल्म है।
अगले अंक में हम चर्चा करेंगे जुगुप्सा रस की महान फिल्मों की।