आज 'प्रभात खबर'के कुछ संस्करणों में दीवाली पर मेरा यह छोटा सा लेख आया है. मौका मिले तो देखिएगा- मॉडरेटर
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दीवाली जिस दिन मनाई जाती है वह दिन उस महीने का सबसे अँधेरा दिन होता है- कार्तिक मास की अमावस्या. कथा है कि जब भगवान राम लंका विजय के बाद, वनवास बिताकर अयोध्या लौटे थे तो उनके स्वागत में प्रकाश का यह पर्व मनाया गया था. इस कथा का एक प्रतीक यह बनता है कि यह राम रावण के अपराजेय समर में राम की जीत के शाश्वत सन्देश का त्यौहार. इसका एक प्रतीकार्थ यह भी माना जा सकता है कि यह उम्मीद की रौशनी का सबसे बड़ा त्यौहार है- सबके जीवन में उजाला हो. फ़िराक गोरखपुरी की नज़्म याद आ रही है- ‘शब का चेहरा है नूरानी दीवाले के दीप जले/ जुग-जुग से इस दुःखी देश में बन जाता है हर त्योहार/ रंजोख़ुशी की खींचा-तानी दीवाली के दीप जले!’ एक ऐसे देश में उम्मीदों का सबसे बड़ा त्यौहार जिसमें जहाँ बड़े स्तर पर गरीबी है, बदहाली है. बढती महंगाई से जी हलकान हुआ जा रहा है. लेकिन फिर भी दीवाली हर साल आती है. एक दिन के लिए सबको खुश कर जाती है.
इसी तरह से दीवाली से जुडी लक्ष्मी की कथा के प्रतीक को भी समझा जा सकता है. कहा जाता है कि इस दिन दिया रात भर जलाकर रखना चाहिए क्योंकि लक्ष्मी इस रात घर-घर समृद्धि बाँटती फिरती हैं. सबके घर में खुशहाली फैले. दीवाली का एक सन्देश यह भी है. एक तरफ यह साल भर में नई नई वस्तुएं खरीदने के सबसे बड़े पर्व के रूप में मनाया जाता है, हर आदमी खरीदने और देने के भावों से भरा होता है. महानगरों में यह उपहार देने के भी सबसे बड़े पर्व के रूप में मनाया जाता है. एक वर्ग खरीदने के लिए, देने के लिए, घूमने के लिए, खाने के लिए, पीने के लिए, जुआ खेलते हुए इस पर्व को मनाता है. दूसरी तरफ समाज का बड़ा तबका आज भी दूसरों के घर रौशनी देखते हुए, बाजारों की रौनक देखते हुए दीवाली के पर्व को मनाता है. यह अभावों भरे घर में भाव का दिया और उम्मीद की बाती जलाने का पर्व है. जो नहीं है उसकी उम्मीद को मुसलसल बनाए रखने का त्यौहार. गोपालदस नीरज के गीत की पंक्तियाँ हैं न- ‘तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो/ मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊँगा!’
इन पंक्तियों से याद आया कि ऐसे समय में जब समाज में दूरियां बढ रही हैं, बढ़ाए जाने की कोशिशें हो रही हैं वैसे में यह मिलने-जुलने का सबसे बड़ा त्यौहार है. कहते हैं इस दिन अगर कोई दुश्मन भी घर आ जाए तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए. भारत जैसे बहुसांस्कृतिक देश में दीवाली हर साल यह सन्देश दे जाता है कि मिलते-जुलते रहें, मिल-जुलकर रहें. इस तेजगाम भागती जिन्दगी में दीवाली अब एक दिन अपनों से मिलने, हर मिलने वाले को अपना बनाने वाला त्यौहार बन गया है. यही बात इसे धर्म से ऊपर उठकर भारतीय संस्कृति के एक प्रतीक के रूप में शाश्वत बनाए हुए है. दीवाली भारत के होने की मजबूत परम्परा का सबसे बड़ा उत्सव है, रौशनी तो होनी ही चाहिए न!