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पंकज चतुर्वेदी की 15 कविताएं

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अपनी पीढ़ी के जिन कवियों के मैं खुद को निकट पाता रहा हूँ पंकज चतुर्वेदीउनमें सबसे प्रमुख हैं. शोर-शराबे से दूर उनकी कविता में हमारे समय की बहुत सारी अनुगूंजें सुनाई देती है. स्पष्ट वैचारिकता के साथ सघन कविताई का ऐसा ताना-बाना आजकल की कविताओं में वायरल होता जा रहा है. नए साल की शुभकामनाओं के साथ साल की पहली पोस्ट- मॉडरेटर 
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1.
अच्छा 

बेशक यह दावा है व्यवस्था का
कि अच्छा उसके बग़ैर
मुमकिन नहीं

मगर दरअसल
अच्छा कुछ हो
तो यह उसकी चूक है



2.  
साथ


मेरा साथ इसलिए मत देना
कि मैं तुम्हारा सजातीय हूँ
या मित्र हूँ
या इस प्रत्याशा में
कि मैं भी तुम्हारा साथ दूँगा

व्यक्ति का साथ मत देना
सच का देना
क्योंकि फिर मैं तुम्हारा साथ
नहीं भी दे पाया तो
तुम्हें यह रंज नहीं होगा
कि एक निम्न प्रयोजन से
तुम मेरे साथ खड़े रहे थे



3. 
लक्षण


वे जो सही समझकर करते हैं---
दंगों से लेकर हत्या और विध्वंस तक---
गोडसे की तरह रँगे हाथों पकड़ लिये जायँ
तो बात और है
वर्ना आम तौर पर
स्वीकार नहीं करते
कि भले संविधान का उल्लंघन हो
पर उन्होंने उसे
सही जानकर किया है

यानी जो वे करते हैं
उसके लिए ज़िम्मेदार होना
तकलीफ़ उठाना
या सज़ा पाना नहीं
बल्कि उसके ज़रिए
भय और वैमनस्य फैलाकर
हुकूमत चलाना चाहते हैं

ये सारे लक्षण
अपराधियों के हैं
नेताओं के नहीं



 4.
अगर मैंने तुमसे बात की


मेरा मोबाइल बज रहा है 
उसमें तुम्हारा नाम लिखकर आ रहा है
मैं जान गया हूँ कि यह तुम हो
इसलिए उसे उठाऊँगा नहीं

तुम्हें मेरी मित्रता या नहीं तो
मेरे हृदय की कोमलता पर यक़ीन है
यों तुम इस संभावना पर सोचते हो
कि तुम्हारा नम्बर मेरे पास नहीं है

इसलिए तुम मुझे एसएमएस करते हो :
यह मैं हूँ तुम्हारा पुराना दोस्त
एक संकट में पड़ा हूँ
मुझे तुम्हारी मदद की ज़रूरत है

अब तो मैं यह फ़ोन और भी नहीं उठाऊँगा
क्योंकि जान गया हूँ
कि तुम्हें मुझसे महज़ बात नहीं करनी थी
बल्कि मुझे तुम्हारी मदद करनी पड़ सकती है

देखो, सच सिर्फ़ यह नहीं है
कि मैं तुम्हारे लिए मर चुका हूँ
और विज्ञान ने मुझे सुविधा दी है
कि मैं तुमसे वह नफ़रत कर सकूँ
जो पहले नहीं कर सकता था

बल्कि यह भी है
कि मैं अब फ़ासिस्टों की सेवा में लगा हूँ
उसी की बदौलत जीवित और सशक्त हूँ
और अगर मैंने तुमसे बात की
वे मेरी ताक़त छीन लेंगे
मुझे मार देंगे 



5. 
सज्जा-साधन


विवाह में वरमाला के समय
दूल्हे की वेश-भूषा में
सज्जा के अन्य साधनों के अलावा
उसके कंधे से
लटकता था रिवॉल्वर
   
यों वह था रोब ग़ालिब करने के वास्ते
मेहमानों या नव-वधू को
डराने के लिए नहीं

मगर उसके कारण
शादी के बाद होनेवाले
प्यार की प्रकृति से
भय लगता था



 6.
जो संवाद होना चाहिए था


एक दिन सहसा उसे
अपने समीप पाकर
मैं सहम गया
सपने में चलते-चलते जैसे
उसका सौन्दर्य मिले

उसने कुछ मुझसे कहा
जिससे बस यही लगा :
उसे कुछ और कहना था
मैंने भी कुछ कहा
मगर यह जानते हुए :
यह उसका उत्तर नहीं
जो वह मुझसे कहना चाहती थी

फिर दूसरी व्यस्तताएँ थीं
जिनमें खो गया हमारा सान्निध्य

जो संवाद होना चाहिए था
उसके लिए ज़रूरी था अनंत दिक्काल

जबकि उत्सव हमारे मिलने की जगह थी
उत्सव ही बिछुड़ने की वजह



 7.
स्वीकार


उसके स्वीकार से
पहले अचरज हुआ
फिर हर्ष
फिर व्याकुलता

वह थी जीवन के शिल्प को
सबसे बड़ी चुनौती



8. 
अनिच्छा


ठहरा हुआ जल
अधिक ठंडा था
बहते हुए जल से

उसमें उतरने की
इच्छा नहीं होती थी



 9.
शिल्प


वह मेरा भय था
तुमने उसे शिल्प कहा



 10
शिल्प-रहित


तुलसीदास ने जब कहा :
कभी मैं अपनी तरह रह सकूँगा *
तो प्रश्न यही था :
जीवन का शिल्प क्या हो

कविता का शिल्प था
पर उसमें यह तकलीफ़ समाहित थी
कि जीवन का शिल्प नहीं था


* ''कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो।"---तुलसीदास



11 
हानि


उत्तेजना में वे 
भाषा के बाहर चले गये
चुनौती थी पतन पर
क्षोभ की अभिव्यक्ति की

मैंने कहा :
आप अपने शिल्प की
हानि क्यों कर रहे हैं ?



12 
हिंसा


साँप और मनुष्य
न जाने कब से
एक-दूसरे से
खिंचे हुए हैं

हिंस्र हैं
मगर इसलिए
कि वे डरे हुए हैं
अपनी हत्या की आशंका से

हिंसा सिर्फ़ भय का आवरण है



13 
मेरा होना


मेरा होना ही गुनाह
तुम्हारी आह का सबब



14. 
चिन्ता


ख़याल रखना था
आत्म-तत्त्व का
अलंकरण का नहीं

मगर मैंने देखा :
लोगों को संज्ञा की
परवाह नहीं थी
और वे विशेषणों की
चिन्ता में पड़े थे



15. 
वर्षा में


वर्षा में भीगे हुए वृक्ष प्रसन्न हैं
शीतल है पवन

घास में मसृण हरीतिमा है
मिट्टी में साँवली नमी

आँगन में फूल खिला है ग़ुलाब का
और तुलसी सुगन्धित

धूप और चाँदनी से अलग
कोमल आभा है दिन की

आसमान बिछुड़ा हुआ समुद्र है
अपने उत्स में मिल जाना चाहता है
छटपटाहट उसकी आक्रामक उदारता है

समूची प्रकृति नहायी हुई खड़ी है
नयी
पावन
सजल
उत्फुल्ल

स्नान के बाद जैसे तुम्हें
पाया हो मैंने




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सम्पर्क- हिन्दी विभाग,
                                                                  डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय,
                                                                  सागर (म.प्र.)---470003
                                                       मोबाइल-09425614005 

                                                         ई-मेल- cidrpankaj@gmail.com

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