स्कूल बॉय अमृत रंजनहिंदी का शायद सबसे कम उम्र का कवि है और वह अपनी इस जिम्मेदारी को समझता भी है. उसकी कविताओं में लगातार दार्शनिकता बढ़ रही है. जीवन-जगत को लेकर जो प्रश्नाकुलता थी उसकी जगह एक तरह का ठहराव दिखाई देने लगा है. पहल बार उसकी कवितायेँ मुझे बहुत मैच्योर लगीं. आप भी पढ़कर बताइयेगा- प्रभात रंजन
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1.
शाम
दिन ख़त्म हो रहा था
आख़िरकार।
धीमी सी रौशनी देते हुए
कह रहा था —
बहुत काम किया तुमने,
जाओ घर जाओ।
अपनी धीमी मुस्कुराहट
देते हमें अलविदा कहता है।
धीरे-धीरे रात छिपे
हुए आकर शाम को
धक्का देते हुए
ज़ोर से ठहाका लगाती है।
रात अपना चादर ओढ़े
सो जाती है।
(३ दिसंबर २०१५)
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2.
खुशी का ज़ीना
हताश में एक आदमी नीचे बैठ गया,
उस समय उसके दिमाग में कुछ नहीं आया,
बस खुशी के ज़ीने ने उसे घेर लिया।
दिन रात वह सोचता रहता था
खुशी के बारे में
कुछ भी कर सकता था वह अपनी
खुशी के लिए,
एक तिनके भर खुशी
उसकी जिन्दगी का मकसद बन गई।
उसने एक दिन दुख को मरते देखा,
हालात में पड़ गया वह।
जो दुख उसे अभी भी
हताशा से तड़पा रहा था
उसके सामने,
उसके पैरों पर
उससे मदद माँग रहा था।
उसने अपने दिल से सोचा
मन से नहीं।
उसने दुख की जान बचाई,
यह करने से उसके दिल को शांति मिली,
दुख का हाथ उसके कंधे पर था,
दोनों एक साथ चले
अहसास को दोनों में से कोई नहीं जानता था,
साथ चलने को जानते थे।
(04-10-2014)
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3.
ज़िन्दा-मुरदा
आज मुझे जीने का मन था,
लेकिन इस कमबख्त ने
मेरी बात टाल दी।
मेरी ज़िन्दगी की चलाकर
मुझे ज़िन्दा मार देता।
मैं बस अपनी बातों को
किसी को बोलना चाहता
लेकिन इस कमबख्त मन ने
मेरी बात टाल दी।
मैंने मन से साँस लेने की इजाज़त माँगी
लेकिन इस कमबख्त मन ने
मेरी बात टाल दी।
आख़िर में मैंने मरने की इजाज़त माँगी
लेकिन इस कमबख्त मन ने
मेरी बात टाल दी।
(५ जून २०१४)
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4.
मौत
मौत ज़िन्दगी का तोहफा है।
मौत ज़िन्दगी के बड़े से दिन में
रात की नींद होती है।
और इतने बड़े दिन के बाद,
इतनी ठोकरें खाने के बाद,
इतने काँटें चुभने के बाद
इतना सब कुछ पाने के बाद,
इतना सब कुछ खोने के बाद,
इतनी लड़ाइयाँ लड़ने के बाद,
इतने धागे सिलने के बाद,
सुबह वापस कौन उठना चाहेगा?
(५ फ़रवरी २०१६)
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