इस कविता आच्छादित समय में ध्यान आया कि बाल कविताओं की विधा में किसी तरह का नवोन्मेष नहीं दिखाई देता है. बाल कविताएं अखबारों और पत्रिकाओं में फिलर की तरह बनकर रह गई हैं. ऐसे में अंकिता आनंदकी इन कविताओं ने चौंका दिया. अंकिता जी की इन कविताओं में बाल कविता को एक नया मुहावरा देने की कोशिश दिखाई देती है- मॉडरेटर
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1.
गुठलियों के दाम
घर-बाहर मुझे सब कहते हैं, 'कुछ ऐसा करो कि नाम हो.'
पर नाम तो मेरा पहले से है,
लिखने-कहने-सुनने में है.
तो क्यों ना चुनूँ कोई ऐसा काम, जिसे करना ही इनाम हो?
2.
जाड़े का पिटारा
चटाई पे टाँगे पसार धूप खाता गरम गेहूँ,
नानी के साथ घिसे काले तिल की खुशबू.
संक्रान्ति वाला कोंहड़ा,
बोरसी के पास वाला मोढ़ा.
मुँह से निकलने वाला कुहासा,
बस थोड़ी देर में रजाई समेटने का झाँसा.
शाम का शटर जल्दी गिराने वाली गली,
बालू पे भुनती, बबल रैप सी पटपटाती मूँगफली.
नहाने के पहले सरसों का तेल,
शरद विशेषांक वाला स्वेटर बेमेल.
क्या ही अच्छा हो
जो नाच कहूँ हर बात,
तो यारों क्या ही अच्छा हो.
छुट्टी जोहे हमारी बाट,
तो सोचो क्या ही अच्छा हो.
बकरों साथ पढ़ें हम बच्चे,
तो क्या ही अच्छा हो.
हम घास चरें वो पर्चे,
तो क्या ही अच्छा हो.
4.
मुँह मीठा
खाने के बाद करना है कुल्ला,
बात सही है, पता है मुझको.
पर मेरा उड़नखटोला चले तो,
कभी ना धोऊँ मुँह रस्गुल्ला.
5.
उधार
क्या एक दिमाग उधार मिलेगा?
अपने से तो भर पाई!
गणित की परीक्षा में ये कहेगा,
'सुनाऊँ कविता जो याद आई?'
6.
गुड़िया
मेरी एक गुड़िया थी.
वो मेरी हर बात मानती थी.
मैं मम्मी की गुड़िया थी.
मम्मी कहतीं, "बात मान ले, तू मेरी गुड़िया है ना."
मैं गुड़िया थोड़े ही ना हूँ.
मैंने अपनी गुड़िया से कह दिया,
उसे मेरे साथ खेलने की ज़रूरत नहीं.
वो जो चाहे कर सकती है.
अब वो दिन भर खिड़की पर बैठ मुस्कुराते हुए आसमान देखती है.
अब वो किसी की गुड़िया नहीं.
7.
गोल घर
चकरघिन्नी चकरी चकरम,
गोले कितने भी लगा लो, वहीं पहुँचते हम.
डगमग ख़ुद को पाकर भी कहाँ मैं डरती हूँ,
झटपट जाकर पहले तो कुर्सी पकड़ती हूँ.
माँ-पा के कमरे में भले कुर्सी नहीं, बस खाट,
पर बहस से जो सर घूमे, तो क्यों न सँभलते पकड़ के हाथ?
8.
क्या? क्यों? कब? कैसे?
खाते वक्त बात नहीं करते.
तो सर ने खाते वक्त क्यों कहा
कि खाते वक्त बात नहीं करते?
"मुँह बंद करके खाना खाओ."
मुँह बंद कर लेंगे,
तो खाना कैसे खाऐंगे?
"प्रार्थना के समय सब आँखें मूँद कर रखते हैं."
फिर मैम ने प्रार्थना के समय
मुझे आँखें खोलते हुए कब देख लिया?
पापा पूछते हैं कि मैं हमेशा फोन में क्या देखता रहता हूँ.
मैं देखता रहता हूँ
कि पापा हमेशा फोन में क्या देखते रहते हैं.