दिव्या विजयड्रैमैटिक्स में स्नातकोत्तर हैं. आठ साल बैंकॉक में बिताकर आई हैं. कुछ नाटकों में अभिनय कर चुकी हैं. आकाशवाणी में रेडियो नाटकों के लिए आवाज देती हैं. यह उनकी दूसरी प्रकाशित कहानी है. काफी अलग तरह की संवेदना और परिवेश की कहानी- मॉडरेटर
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रेत स्नान करते हुए पसीने से तर लिली मन ही मन गिनती कर रही थी। उसने आँखें मींच रखीं थीं। बंद आँखों में सब छिप जाता है। बंद आँखें दुनिया से कवच मुहैया कराती हैं। इस वक़्त वो रेत से बाहर निकल समंदर में कूद जाने की ख़्वाहिश पलकों के पीछे छिपाये लेटी हुई थी। आधा घंटा पूरा होने को था। रेत में दबे हुए उसका बदन अकड़ गया था और गर्मी असहनीय हो उठी थी। उसने आँख खोल कर देखा। बीच वैसे ही चहक रहा था। झुण्ड में लड़के लड़कियाँ बीच वॉलीबॉल खेल रहे थे। यहाँ बिकिनी में लड़कियाँ कितनी उन्मुक्त और सहज रहती हैं। अपने शरीर को लेकर किसी प्रकार की असहजता किसी में नहीं दिखती। असुविधा तो यहाँ किसी को प्रेम के पब्लिक डिस्प्ले में भी नहीं होती। साथियों संग धूप सेकते हुए, उनकी मसाज करते हुए हाथ कब अपनी लय छोड़ बैठते ये उनको भी मालूम नहीं चलता होगा। एक गर्भवती स्त्री अपने साथी के साथ वॉक कर रही थी। उसके पेट की धारियाँ स्पष्ट नज़र आ रहीं थीं। लिली मन ही मन अनुमान लगाने लगी कि कितने महीने का गर्भ होगा। दो छोटी लड़कियाँ भागती हुई आयीं और रुक कर उसका पेट छूने की इजाज़त माँगी। ये शुभकामनाएं देने का तरीका था जो उसे बड़ा मज़ेदार लगता था। वो खुद जब प्रेग्नेंट थी तब लोग आकर उसके पेट सहला जाते। बुज़ुर्ग आशीर्वाद देते और बच्चे चूम लेते।
"गर्ल ऑर बॉय?"
"बोथ, ट्विंस।"
"लकी यू आर। ब्लेस यू।"
फिर आगे बढ़ जाते।
लिली ने गर्दन घुमा कर देखा। बीच चेयर्स पर लोग पसरे पड़े थे। बड़ा सा पारंपरिक हैट पहने वेंडर्स नारियल पानी की हाँक लगा रहे थे। अधिकतर लोग बियर के घूँट भर रहे थे और तली हुई मछलियाँ खा रहे थे। वो खुद बेलिनी की दीवानी थी। मगर उसका फ्लूट खाली पड़ा था। उसने अनुमान लगाया अब तक आधा घंटा पूरा हो गया होगा और अपने अटेंडेंट की तरफ देखा। उसने हाथ से पाँच मिनट का इशारा किया। 'ओह, ये आखिर के क्षण कितने बोझिल हो जाते हैं। कभी कभी दीर्घकाल तक जो कठिन नहीं लगता, एक समय उसे निमिष भर भी सहना संभव नहीं होता।'यह ख़्याल आते ही उसकी सारी तवज्जो घुटनों के दर्द की तरफ हो गयी।
घुटनों के दर्द और रक्तसंचार के लिए सैंड थेरेपी डॉक्टर ने अरसे पहले ही बता दी थी। पर वो कभी परिवार के तो कभी काम के बहाने स्थगित करती रही। अब दर्द अधिक हो जाने से उसे टालना उचित नहीं लगा। आरम्भ में सब आते थे। बाद में वो अकेले आने लगी। तत्पश्चात उसे अकेले आना रुचने लगा। एकाकी होने पर वो बेहतर तरीके से चीज़ों को जाँच परख पाती थी। गहनता से उन्हें महसूस कर पाती थी।उसे अच्छी लगती है रोज़ के एकरस जीवन से अलग यहाँ की चहक।
होटल का प्राइवेट बीच होते हुए भी यहाँ वॉटर स्पोर्ट्स के कारण काफी लोगों का जमावड़ा रहता है। रोमांच लोगों के जीवन को गति देता है। तैरना न जानने वाले आशंकित रहते हुए भी ज़ोखिम उठाने का मोह नहीं छोड़ पाते। वो चुप रहकर लोगों को देखती है, बेलिनी पीती है और स्मोक्ड सैल्मन खाती है।
अटेंडेंट उसके ऊपर से रेत हटाने आया तो उसने सुक़ून की साँस की। आधे घंटे भारी रेत के नीचे बेजान पड़े रहने के बाद जब उसके जिस्म ने हरक़त की तो जैसे सघनता तरल हो बह चली।जो रेत काँटों सी चुभ रही थी अब उसकी बीहड़ता समाप्त हो वो फिर निर्दोष दिखने लगी। उसने अंगड़ाई ली। मन प्रफुल्लित हो उठा था। उसे सब कुछ ताज़ा लगा। वह द्रुत गति से दूरी पार करती हुई समंदर में छलांग लगाने को थी कि उसे कोलाहल सुनाई दिया। बनाना बोट पलटने पर जब उस पर सवार लोग समंदर में गिरते तो शोर मचाकर अपना उल्लास ज़ाहिर करते। प्रथम दृष्टया उसे यह वही लगा पर लोगों का तेज़ी से भागना अनहोनी का संकेत दे रहा था। कहीं फिर से कोई दुर्घटना तो नहीं हो गयी। पिछली बार पैराग्लाइडिंग के दौरान एक आदमी बेल्ट खुलने पर सीधे पानी में गिर पड़ा था।
एक लड़के को कुछ लोग उठाये चले आ रहे थे। जहाँ लिली खड़ी थी उसी के निकट ला लिटा दिया। लिली ने देखा चौबीस पच्चीस साल का नौजवान था। बाल आजकल के लड़कों की तरह नए फैशन में कटे थे। गले में महंगे स्पीकर्स टंगे थे और शर्ट की जेब से रे- बेन झांक रहा था।
"पता नहीं कैसे समंदर में बह गया। अचेतावस्था में होगा।ड्रग्स लेकर पड़ा होगा। मछुआरों की नाव वहाँ से गुज़र रही थी। उन्होंने देख लिया।"एक आदमी ने कहा। "क्या इसे अस्पताल ले जाना होगा।"
लिली ने नीचे झुक कर उसकी नब्ज़ देखी। साँस चल रही थी। कॉलेज में सीखा हुआ प्राथमिक उपचार देने का तरीका उसे याद था। उसने कहा "सब ठीक है। अभी होश में आ जायेगा।"
कहकर वो काफ्तान उतार समंदर में कूद गयी। ठंडी लहरों ने जिस्म छुआ तो मिटटी की परतों संग तन की शिथिलता भी ख़त्म हो गयी। समंदर में उसे मैडिटेशन जैसा एहसास आता है। सिर पानी के अंदर करती है तो सारी दुनिया से राब्ता ख़त्म हो जाता है। अलौलिक शांति का अनुभव होता है उसे। बाहर की आवाज़ों के विरुद्ध भीतर की निस्तब्धता उसे लुभाती है। शाम उतरने लगी थी। पानी का रंग बदल रहा था। सूरज पिघल कर समंदर में टपक रहा था। उसने सूरज की परछाई पर एक गोता लगाया और उसे अपने भीतर भर लिया। तैरने का यह वक़्त उसे हमेशा से अच्छा लगता है। दिन भर तप्त रहा समुद्र अब शांत होने लगता है। पानी की ठंडक में हवा की ठंडक घुल जाती है जो देह को अलहदा रोमांच से भर देती है। उसने काफी दूरी तय कर ली तो अचानक पानी में एक जोड़ा क्रीड़ा में रत नज़र आया। जिस तरह वे दोनों एक दूसरे में गहनता से डूबे हुए थे उसे दो योगी साधना में लीन लगे। वो चुपचाप लौट चली। समंदर की चुम्बकीय शक्ति उसे जिस तरह खुद से चिपका कर रखती है उस हिसाब से उसे बाहर नहीं निकलना चाहिए था पर अब वो थकने लगी थी। जहाज़ के मस्तूल दीख पड़ रहे थे। उसे भ्रम हुआ कि वो नज़दीक आ रहा है या दूर जा रहा है। दूर एक लाइटहाउस की बत्ती झपझपाती नज़र आ रही थी। उसने तय किया कभी तैरते हुए वहाँ जायेगी।
वापस किनारे आ उसने काफ्तान पहना। तभी उसे वही लड़का नज़र आया। वो अभी तक वहीं बैठा हुआ था। वो आगे बढ़ने को हुई पर उसकी नज़र दुर्ग पर पड़ी जो उसने रेत से बनाया था। एक एक कार्विंग पर यूँ काम कर रहा था जैसे वह सदा के लिए रहने वाला है। पर जिस चीज़ ने सबसे ज़्यादा उसका ध्यान आकर्षित किया वो था उस किले से झाँकता एक चेहरा। इतनी सी देर में मिटटी से इतना खूबसूरत बुत बना देना। इसके हाथों में हुनर है। वो खुद भी स्कल्पचर की वर्कशॉप चलाती है इसलिए समझ पाती है।
उसके क़दम बढ़ चले लड़के की ओर।
'हाय, आई एम लिली। हाउ आर यू नाउ।"
लड़के ने तिरछी नज़रों से उसे देखा और रूखी आवाज़ में कहा, "आई एम फाइन।"
जिसका अर्थ उसे लगा , "यू मे गो।"
पर वो वहीं बैठ गयी।
"दिस इस ब्यूटीफुल।"
"यस, आई नो। फिर भी शुक्रिया।"
"सैंड के अतिरिक्त कुछ और भी उपयोग में लेते हो।"लिली ने बात शुरू करने की गरज से पूछा।
"नहीं।"अशिष्टता से भरी एक आवाज़ आई।
"जानते हो सैंड आर्ट का इतिहास कहाँ तक जाता है। अटकलें लगायी जाती हैं इजिप्ट के लोग सदियों पहले मिटटी से पिरामिड के मिनिएचर बनाया करते थे।"
एक खुरदुरी सी दबी हुई आवाज़ आई जिसे लिली भी ठीक से नहीं सुन पायी। कुछ देर उसे काम करते देखती रही। उसकी आँखों में एक विवश भाव था। उसे याद आया कि वो मरते मरते बचा है।
"पानी में कैसे गिर गए थे? लोग कह रहे थे ड्रग्स लिए हुए थे?"
"नहीं, आत्महत्या की कोशिश थी।"वो निर्लिप्त लहज़े में बोला।
लिली चौंक गयी। उसकी बात से नहीं। उसकी आवाज़ की निर्लिप्तता से। खुद के लिए, जीवन के लिए इतना इंडिफ्रेंस। कैसे मुमकिन है।
बेसाख़्ता लड़के का हाथ उसने थाम लिया। लड़के ने चौंक कर उसे देखा। इतनी देर में कितने ही लोग उसके पास से गुज़र गए। कुछ एक ने रुककर हाल पूछा। कुछ कौतूहल दिखा चले गए। पर किसी ने उसे नहीं थामा।
उसने देखा इस स्त्री की आँखें तरल हैं। बॉडी लैंग्वेज बेहद विनम्र।सभ्य और शिष्ट, मध्य वयस् की यह स्त्री उसे सौंदर्य से युक्त लगी। काफ्तान से झाँकता गठीला बदन, नियमित वर्जिश की गवाही दे रहा था।
उसने हाथ वहीं रहने दिया। उसका स्पर्श अच्छा लगा। अजाना पर एक स्पार्क से भरा। पानी की एक नन्हीं बूँद नाखून पर ठहरी थी। उसने वहीं नज़रें जमा लीं। लिली ने हाथ हटाया तो उसका ध्यान टूटा।
अटेंडेंट सूचना देने आया कि स्पा तैयार है। वो उठने को हुई फिर न जाने क्या सोचकर मना कर दिया।
"मे आई गेट यू टू सम ड्रिंक्स।"
"बेलिनी फॉर मी। और तुम्हारे लिए।"
"स्ट्रॉबेरी शैम्पेन"उसे गुलाबी नाखून पर अटकी सफ़ेद बूँद याद आई।
"मुझे बेलिनी बहुत पसंद है। सबसे पहले यह मैंने वेनिस में चखी थी। इसके नामकरण की कहानी अनोखी है। पंद्रहवी शताब्दी में जिओवानी बेलिनी नाम के एक चित्रकार हुए थे। उन्होंने एक पेंटिंग बनायी जिसमें संत के चोगे का रंग इस पेय के रंग समान था। उन्नीसवीं शताब्दी में वेनिस के मशहूर बार के मालिक ने आडू और वाइन मिलकर इसका अविष्कार किया। इस नए बने पेय को देखते ही जो पहली चीज़ उसके दिमाग में आई वो बेलिनी की पेंटिंग के संत का चोगा था और उसने इसका नाम बेलिनी रख दिया।"वो लिली की आवाज़ विस्मयाभिभूत होकर सुन रहा था। अभी थोड़ी देर पहले यह स्त्री उसमें खीज उत्पन्न कर रही थी। उसे वो रिसर्च याद आई जिसमें बीस सेकंड का स्पर्श किसी व्यक्ति के लिए हमारी अनुभूति बदल देता है। वो अनुमान लगाने लगा कि लगभग कितने समय तक उसने उसका हाथ थामे रखा।
"आओ उधर चलें।"समंदर से कुछ कदम दूर कबाना बेड्स थे। वहीं इशारा करते हुए लिली बोली। "मुझे व्यक्ति के दिमाग की जटिलताएं दिलचस्प लगती हैं। किन बातों का किससे मेल बिठा लेते हैं जबकि दूर दूर तक उनका कोई तारतम्य नहीं।"ज़रा रुककर उसने समंदर को देखा। "जैसे तुम्हें ही लो। तुम्हारे गले में महंगे इअरफोन और चश्मा देख सबने सोचा कि तुम ड्रग्स लेते हो और उसी नशे में बह गए।"
"वो मैंने जानबूझ कर किया था। मैं नहीं चाहता था कोई इसे आत्महत्या समझे।"
लिली हँस पड़ी।
आत्महत्या से पहले इतना आयोजन। फिर भी तुम बच गए।"
"मैं फिर कोशिश करूँगा।"वो यकायक विरक्त होकर बोला।
लिली यह तब्दीली भाँप कर बोली,
"वो छोड़ो। तुम सोचो यह कितनी मज़ेदार बात है। तुम इस संसार को त्यागते वक़्त विषाद से नहीं भर रहे। तुम्हारा चित्त इस बात से आशंकित है कि तुम जो कर रहे हो उसे कोई अनुचित न मान ले। स्वीकृति के प्रति इतना आग्रह क्यों? मृत्यु के निश्चय के पश्चात् पीछे वालों के लिए संताप क्यों?"
"वो इसलिए कि शायद यह वजह मेरे पीछे जीने वालों का दुःख कम कर दे। मेरे आत्मघात को वो कभी पचा नहीं पाएंगे।"खिन्नचित हो उसने कहा था।
"उनके लिए इतना रंज है तो यह क़दम उठाना ही नहीं चाहिए। यूँ भी दुःख कभी कम नहीं होते। हम उन्हें नए नए दुःखों से ढाँपते जाते हैं। किसी भी दिन ज़रा हवा लगते ही पुराना दुःख सर उठा लेता है। पर क्या सचमुच मृत्यु चाहने की वजह इतनी बड़ी है कि जीवन का अंत कर देना पड़े।"
"नहीं, वजह कुछ खास नहीं। पर जीवित रहने का भी कोई खास कारण नहीं।"
"आज इस शाम, लहरों को देखते हुए, किसी अजनबी के साथ शराब पीते हुए तुम्हें ज़िंदगी बदमज़ा लगती है?"लिली आवाज़ में चपलता घोलते हुए बोली। वो कुछ क्षण उसे देखता रहा। उसे समझ नहीं आया उसकी आँखें अधिक अथाह हैं अथवा उसका स्वर।
"तुम मुझसे बड़ी हो। इतने सालों से जीते हुए तुम कभी ऊब से नहीं भरी? क्या तुम हर रोज़ मन बहलाव के लिए कोई नयी वजह ढूँढ पाती हो।"
"हर रोज़ नया कारण नहीं मिलता। पुरानी वजह से ही प्रतिदिन कोई नया ख़्याल उपजता है जो बूँद बूँद रिस कर ज़िन्दगी को जीने लायक करता जाता है। जैसे आज तुम्हारा यहाँ होना। मैं लगभग हर महीने यहाँ आती हूँ। दो दिन ठहर कर चली जाती हूँ। कभी कोई वाक़या याद रखने लायक नहीं हुआ। पर आज अलग है। मैं एक ऐसे व्यक्ति के साथ बैठी हूँ जो शायद इस क्षण होता ही नहीं। पर वो है और मैं उसके साथ हूँ।"
बैरा ड्रिंक्स रिफिल करने आया तो लिली चुप हो गयी। नीला समंदर सलेटी हो चला था। दिन भर की चहल पहल के बाद जैसे समंदर भी थक चला था। एक छोटी नौका परचम लहराते हुए चली आ रही थी। चाँद का सिरा दिखना शुरू हो गया था और ज़रा देर में लहरें उत्ताप से भर उठने वाली थीं। लिली ने उसे देखा। वो उस दुर्ग को निहार रहा था जो उसने बनाया था।
"मैं तुम्हारी जगह होती तो मृत्यु का निर्णय लेने के पश्चात् किसी का मोह नहीं करती।"
उसकी लंबी बरौनियाँ उसके गालों पर छाया कर रही थीं। "मेरा नाम रिचर्ड है।"
लिली ने गौर किया कि खुद के नाम पर वो ज़रा लड़खड़ाया था।
"रिचर्ड"जितना सकपकाया हुआ उसका लहज़ा था उतनी ही मज़बूती से लिली ने उसका नाम पुकारा। रिचर्ड घूँट भरता हुआ रुक गया। उसके साथ ही जैसे सारी सृष्टि थम गयी। पहले किसने उसका नाम ऐसे लिया था जैसे सारी प्रकृति ने उसे पुकारा हो। उसका कोई अस्तित्व है इसका बोध कराने वाला कोई अपरिचित होगा उसने कभी नहीं सोचा था।
लिली ने अपना ग्लास पास की तिपाई पर टिकाया और आसमान की ओर चेहरा कर लेट गयी। उसके बाल रेत को छू रहे थे।
"तुमने कभी किसी से प्रेम नहीं किया?"
"किया तो है मग़र मुझे स्त्रियाँ समझ नहीं आती। वे क्या चाहती हैं और क्या नहीं, समझ से बाहर है।"टहलती हुई दो लड़कियों पर उसकी निगाह ठहर गयी थी। पूरे कपड़े पहने वे दोनों समंदर में कूदने को तैयार थीं।
लिली की नज़र उसकी नज़रों का पीछा करते हुए वहाँ तक पहुँची। वो पलट का लेट गयी, "स्त्रियाँ जंगली जानवर की तरह होती हैं।जैसे वो अपनी इंस्टिंक्ट से नियंत्रित होते हैं उसी तरह स्त्रियाँ भी। वन्य जीवों की खास ज़रूरतें होती हैं। पाबंदियों में वो सर्वाइव नहीं कर पाते। कर भी लेते हैं तो उनकी मौलिकता ख़त्म हो जाती है। स्त्रियों को पालतू बनाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। उनका जंगलीपन समाप्त होते ही वो भिन्न हो जाती हैं। उनका मन मुर्दा हो जाता है।"रिचर्ड को लगा उसने लिली की आँखों में लाल रंग की लपट देखी है। लिली की प्रचंडता उस पर हावी होने लगी थी।
"हाँ, तुम ठीक कहती हो। मैंने अपने आस पास कोई ज़िंदा औरत नहीं देखी। मेरी माँ, बहन, दोस्त कोई भी नहीं। एक लड़की थी पर वो कुछ अरसे बाद बदल गयी। उसमें ऐसा परिवर्तन आया जिसे मैं उस वक़्त चिन्हित नहीं कर सका था।"कहते हुए वो अधलेटा हो गया था।
लिली ने गहरी नज़रों से उसे देखा। पास ही होटल के अटेंडेंट्स बत्तियाँ मद्धम कर रहे थे। हैलोजेन लाइट्स बंद हो चुकी थीं। लॉबी से लेकर समंदर तक गार्डन पाथ बना हुआ था। वहाँ अलग अलग रंगों की गार्डन लाइट्स जल रही थीं। धुंधलाती शाम और गहराती रात में नारियल के बड़े बड़े पेड़ों की छाया सन्नाटे पर कोई अस्पष्ट लकीर खींच रही थी।
"मैं तुम्हें कैसी लगी।"एक फुसफुसाहट उभरी।
रिचर्ड को लगा एक हूक उसे पुकार रही है। एक बनैले जीव का आमंत्रण रात के बियाबान में उसे आवाज़ दे रहा है। उसे सिहरन महसूस हुई। एक चाह ने उसे जकड़ लिया। यह सायास है या अनायास। रिचर्ड ने लिली की आँखों में देखा। वहाँ कोई सुराग न था। लिली के होठों पर अधखिली मुस्कराहट थी।
"तुममें जीवन बह रहा है। तुम्हें देख तुम्हें प्यार करने का मन करता है।"कहते हुए वो आगे सरक आया।
लिली हँस पड़ी।
"इतना डेस्पेरेट क्यों हो रहे हो? अगर तुम किसी में वाक़ई दिलचस्पी रखते हो तो उसे इतनी जल्दी प्रकट मत करो अन्यथा सब रुख फेर लेंगे। वैसे तुम क्या हर बार इतने ही डेस्पेरेट हो जाते हो?"उसकी आँखों में शरारत नाच रही थी।
"तुम मुझसे सब कुछ क्यों जान लेना चाहती हो।"रिचर्ड के स्वर में रोष था।
"तुमने ज़िन्दगी से क्या सीखा है?"
"मैंने सीखा कि खुद को किसी के सामने ज़ाहिर नहीं करना। इंटेंस क्षणों में जो बातें हम कह देते हैं उन्हीं बातों से हमें हमारे राज़दार ज़ख़्मी करते हैं।"भीगे हुए कपड़ों में लड़कियाँ उसी 'कासल'के पास बैठीं उसमें जोड़ तोड़ कर रही थीं। वो मुस्कुराने लगा। "तुम्हें ज़िन्दगी ने क्या सिखाया?"
"मैंने सीखा कि खुद को कहीं कहीं ज़ाहिर करने में कोई हर्ज़ नहीं। वेंटिलेट करने का कोई रास्ता होना चाहिए। हमें ये सीखना चाहिए कि खुद के हिस्से किसे सौंपे। हमें लोगों को सावधानी से चुनना चाहिए मगर चुनना ज़रूर चाहिए। आओ समंदर में चलें।"
"अभी!"उफनती हुई लहरें देख रिचर्ड ने पूछा।
"मैंने यह भी सीखा कि हर बात पर सवाल उठाना सही नहीं। कुछ लम्हों के साथ बह जाना ठीक होता है।"वो रिचर्ड का हाथ थामे समंदर की ओर चल पड़ी।
"रिचर्ड, तुमने समंदर ही क्यों चुना?"
"मुझे आसान लगा यहाँ।"
"जहाँ आसाइश की तमन्ना होगी वहीं सब कुछ मुश्किल हो जायेगा। ज़िन्दगी चुनो या मौत पक्का इंतज़ाम करना।"
"तुमने ज़िंदगी क्यों चुनी?"
"क्योंकि मौत मुझे खुद चुनेगी एक रोज़। आओ।"
एक क़दम पानी पर रख लिली पीछे मुड़ी। "रिचर्ड तुम्हें तैरना नहीं आता। मेरे साथ क्यों चल रहे हो। मना कर सकते हो। सच, मुझे बुरा नहीं लगेगा।"लिली के स्वर में असमंजस था।
"मैंने ज़िन्दगी चुनने का निर्णय किया है।"रिचर्ड विश्वास से भर कर बोला। लिली ने देखा उसकी आँखें चमक रही थीं। इस बार रिचर्ड ने उसका हाथ कस कर पकड़ लिया।
दोनों हाथ थामे एक एक क़दम पानी में उतरते गए। दूर तक कहीं कोई नहीं था। रिचर्ड ने पीछे मुड़ कर देखा। दोनों लड़कियाँ जा चुकी थीं। 'कासल'पूरा हो चुका था मग़र अब लहरें वहाँ तक पहुँच कर उसे खुरच रही थीं। जब तक वो वापस लौटेंगे लहरें उसे बहा चुकी होंगी।
उसने लिली को देखा। लिली काफ्तान पानी में बहा चुकी थी। रात का संगीत हर ओर बह रहा था। दूर कहीं कोई गिटार पर हिप्पी धुन बजा रहा था। उसे धुन के साथ अपने भीतर उल्लास सुगबुगाता हुआ महसूस हुआ जिसे उसने बरसों से महसूस नहीं किया था। उसे लगा वो धुंध के पार देख सकता है। उसने देखा लिली मुस्कुरा रही थी। एक मन दूसरे मन की व्याख्या स्पर्श से कर रहा था। उसका मन आल्हादित हो उठा।
लिली एक क्षण के लिए ठहरी।
"मेरा हाथ थामे रखना। हम लाइट हाउस तक जायेंगे।"