नॉर्वेवासी डॉक्टर-लेखक प्रवीण कुमार झाको जितना पढता हूँ उनका मुरीद होता जाता हूँ. जैसे उनकी यह चिट्ठी ही पढ़ लीजिये. क्या सेन्स ऑफ़ ऑब्जर्वेशन है- मॉडरेटर
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हर व्यक्ति एक खास आकार में सोता है।
ग्राम-दलित ताड़ी-देशी में धुत्त, एक ताबूत में लाश की तरह अपने आपको सिकोड़ लेते हैं। सर के नीचे गठरीनुमा गमछा और टागें फौजियों की तरह सीधी। कभी-कभी यीशू की तरह टखने के ऊपर टखना, और हाथ मुड़कर छाती पर। निश्चल-निरीह। अब कोई सामंत आये और पिछवाड़े पर लात मार उठाए या शहर के फुटपाथ पर कोई चुपके से कुचल जाये।
इन्ही दलितों में कुछ अब pugilistic यानी मुक्केबाज-मुद्रा में सोने लग गए हैं। दोनों मुट्ठियाँ कसी हुई छाती से आगे की तरफ। कमर से टाँगे थोड़ी मुड़ी हुई, और चेहरे पर एक अजीब सी शिकन। हवाई-चप्पल सर के पास या कभी गमछे के नीचे। कुत्ते जैसी श्वान-निद्रा। कि कुछ आहट हो, झट चप्पल उठाएँ और लपक कर भाग लें।
सर्वहारा वर्ग थोड़ा 'सीजनल'है।
ठंड में रफू किये कंबलों में 'द'आकार में सिकुड़े, और भीषण गर्मियों में 'H'आकार में दोनों हाथ-पैर चित्तंग पसारे। ठंड में हाथ कंबल को यूँ भींच कर रखते हैं, जैसे कब कोई खींच ले! वहीं गर्मी में बनियान तोंद से ऊपर, पसीने से तरबतर, हाथ में हथकंघा, और टाँगों पर मच्छरों की टी-पार्टी! पुरूष हो या स्त्री। सब के सब चित्तंग। असल में मुद्रा कोई भी हो, ये वर्ग सो नहीं पाता।
आप वर्ग बदलना चाहते हैं, सोने की मुद्रा आज ही बदल लें। 'सोने की मुद्रा'मतलब sleeping posture.
चेहरे पर हल्की मुस्की लाएँ। स्लीपिंग-गाउन डालें और दोनों टाँगों के बीच तकिया घुसेड़ लें। सिरहाने पर आधी-खुली किताब। कुछ इत्र की खुशबू। और स्प्रिंग-बेड पर वजनानुसार गड्ढा, जिसमें आप हल्का-हल्का उछलते रहें। अलार्म लगाकर हल्की भक्क खोलें, और पूरा उठने के लिये ग्रीन-लीफ चाय या प्रेम-चुंबन में चयन कर लें।
मुझे पता है, आप में से कई बीच का रस्ता निकालेंगें। गद्देदार बिस्तर में आपकी कमर मुड़ जाती है। वर्ग-हॉपिंग में आपको spondylosis जो हो गया है। मटमैले पायजामें में सोएँगें, और पेट पर खुजली करते आधी नींद में उठेंगें। बच्चे स्कूल को तैयार हो रहे हैं, बाथरूम से पानी बहने की आवाजें आ रही है, गाड़ियों की चिल्ल-पों हो रही है। आप अखबार उठाते हैं। कहना मुश्किल है, किचन में चाय ज्यादा खौल रहा है या सोफे पर अखबार पढ़ते आपका खून?
मध्यवर्ग का क्या है? सोते हर दिन posture बदलता है, जागते हर दिन पंथ।