सीरज सक्सेनाजाने माने युवा चित्रकार हैं, सिरैमिक के कलाकार हैं। हमें हाल में ही पता चला वे कविताएं भी लिखते हैं। उनकी कुछ कविताएं आज खास आपके लिए- मॉडरेटर
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शून्य का श्रंगार
-1
-
चुप है
रेल की पटरियाँ
एक दूसरे के
बेहद पास
देह की गंध
बांधे है
उन्हें
सख्त है
तुम्हारी
पदचाप
मधुर
एक लय में
ये आलिंगन का स्वर
प्रेम का किनारा तुम्हारे भीतर
डोलता है
पटरियों के ऊपर बने सेतु पर
चलते हम
सांझ की
यह ध्वनि
अब रात में
बदलती है।
२--
तुम्हारे कहे
वाक्यों के बीच
ठहरता है
एक अदृश्य
पूर्णविराम
एक ध्वनि में
स्वप्न में डूबी
मेरी
सुन्न उँगलियाँ
हवा में बहते
इस पूर्णविराम को
पाती हैं
तुम्हारे देश में
३---
कई सदियों में डूबे
तुम्हारे स्पर्श
नम करते हैं
मेरी हथेली
ट्राम से आ रही
खट -खट
हर क्षण
तिरोहित कर रही है
एक एक सदी
तुम्हारा
परिपक्व प्रेम
मेरे साथ
चल रहा है
तुम्हारी बंद आँखे
मेरे वर्तमान में
चुपके से
खुलती हैं
तुम्हारे स्वप्न में
स्पर्श करता हूँ
तुम्हारी
नम
उंगलियां
३---
दैहिक विस्तार और उजास के
किस कोने में है
प्रेम
नहीं
दिखता
हर बार
तुम्हारे
पके
सुनहरे बाल
उसे
ढांक लेते हैं
गुजरा समय
अब भी
तुम्हारे साथ
ठहरा है।
४--
पाठ होता
तो
सीख ही लेता
पर
यह जो
पढ़ा है
तुम्हारे
स्पर्शों से मिले
बीती सदी के
ताप से
विरह से
धुँआ
उठता हैं
जिसकी खुशबू
अभी खिले
फूल से
आ रही हैं।
5
अपनी भाषा में नहीं
कह पाता तुम्हे अपनी बात
तुम भी परायी भाषा
में ही कहती हो
सिर्फ स्पर्श ही
खुशबु की तरह
भाषा के इस दोष
और उसकी कैद से
मुक्त
बह रहे हैं
स्वतन्त्र
शून्य अब श्रृंगार
करता हैं
उसका व्याकरण
हम रचते हैं।
6--
एक छोटा
नन्हा
फूल
अपनी खुशबू के साथ
खिला और
बह गया
अनंत में
अवकाश को भेदती
तितली
अभी अभी यहां से वहां
गुजरी है।
-
रोथ्को के चित्र देखते हुए
1
विरह से उपजा
अवसाद
प्रेम का आलोक
अपना एकांत लिए
तुम्हारे चित्र
अब अपना अर्थ पाते हैं
आध्यात्म
की एक गठान खोलते हुवे
पूर्वग्रह की देह पर।
2---
इस प्रकाश में
तुम्हारे चित्र
अवसाद के चित्र हैं
अंधकार में
तुम्हारे चित्र
दिव्य आलोक से
जगमगाते हैं
तुम्हारे चित्रों को
अब पढ़ा जाना
बाकी है।
3
बंधे
बिंधे
समय को
धागों की
पगडण्डी से
काल को भेदती है
सुई
4
स्पर्श
आकार के
अवतरण का
बहाना है
