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राहुल झाम्ब की कविताएँ

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राहुल झाम्बबिजनेस मैनेजमेंट के ग्रेजुएट हैं. मूलतः बीकानेर के हैं लेकिन रहते बंगलौर में हैं.संवेदनशील कवि हैं. कविता से उनका नाता वैसे ही दिखता है जैसे जीवन का रूह से होता है. बहुत अलग मिजाज के इस कवि की कुछ छोटी बड़ी कविताएँ. इनका पहला कविता संग्रह 'ख्वाब खरामा'हाल में ही आया है. इनके कविता संग्रह को पढ़कर उसके ऊपर प्रसिद्ध लेखक हृषिकेश सुलभ जी ने अपने फेसबुक वाल पर टिप्पणी करते हुए इन कविताओं में अन्तःसलिला संगीत की बात की है. आइये इस अंडरटोन के कवि की कविताएँ पढ़ते हैं- मॉडरेटर 

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यूँहोताहोगा 

येजोरोज़गुज़रताहै
एकपूरा,जीवन
ब्रह्माण्डकेकिसीकोनेसे
बसजुगनूसाटिमटिमाताहोगा

येजोरोज़दीखताहै
एकलम्बा,सफ़र
अनंतकेकिसीआलेसे
बसझपकसागुज़रजाताहोगा

येजोरोज़लगताहै
एकहकीक़त,आभास
खुलीआँखकेकिसीछोरसे
बससपनेसालटकजाताहोगा

येजोरोज़डूबताहै
एकपरिचित,एहसास
परछाईंकेकिसीबादलसे
बसआँसूसाटपकजाताहोगा

 

आसमान 

हरछोटेशहरमें
आसमान
कितनाबड़ादिखाईदेताहै !
औरकितनेतारोंसेभरा !

क्यामेरेहोनेपर
मैंख़ुदआसमानहोजाऊँगा?

 

महक़मिट्टीकी 

मिट्टीकेदीयेभिगोतीमेरीबेटी
भीगतेदीयोंसेआती
वोसौंधीमहक़
जोलातीथीबारिश़
मेरेबचपनकी

अबबचपनहैबेटीका
औरमहक़हैमेराक्रंदन
सूखतीज़मींपर
दौड़तीदरारोंसा

महक़सत्यहै
बचपनमिथ्या

रिश्तेमें, इसबार 

कुछभरगया
कुछखालीहुआ
रूहमेंइसबार
शामिलहुआ, शुमारहुआ

कुछगुज़रगया
कुछबदलगया
नज़रमेंइसबार
धुआँउठा, जानेकहाँगुबारगया

कुछबिकगया
कुछबचगया
सौदेमेंइसबार
सुनतेहैं, हाथआया, साथगया

 

रात

रात...
सबकोसुलादेतीहै

मूँदकेपलकमुड़तीहै
जबआँख, भीतर
फैलादेतीहै, बाँहें
किसीप्रेयसीके अनंत प्रेमसी

औरफिररात...
सब कुछसुलादेतीहै

जादूयाफ़रेब

हरब़ार
भेजदियाकरताथातुम्हें
मेरीकवितायेँ
जैसेकोईख़तभेजताहो

अबतोसबमिटादिएहोंगेतुमने
वेसबनिशान
जोदीखतेथेकभी
निशानियोंकीतरह

अबतोमूँदलिएहोंगेतुमने
वेसबसपने
जोबसतेथेकभी
आस्थाकीतरह

ख़त, निशानियाँ, आस्था
जैसेकोईजादू
याफ़िरकोईफ़रेब

 

भूख

परदेकौंधते
बिजलीकीतरह
मंज़रकारेलागुज़रता
काफ़िलेकीतरह

कैसीसपनेसीमायाहै !

सबहोतास्वाहा
काल-कुण्डमें....

किसकीभूखहैजीवन?


रिश्तेमें, इसबार 

कुछभरगया
कुछखालीहुआ
रूहमेंइसबार
शामिलहुआ, शुमारहुआ

कुछगुज़रगया
कुछबदलगया
नज़रमेंइसबार
धुआँउठा, जानेकहाँगुबारगया

कुछबिकगया
कुछबचगया
सौदेमेंइसबार
सुनतेहैं, हाथआया, साथगया

 

 

तीनपखेरू

एकरातकेतीनपखेरू
इककाला
इकगोरा
औरसाँवलाएक

एकआँगनमें
एकधूपकी
एकफसलके
चुगतेदानातीनों
एकरातकेतीनपखेरूँ...

एकसाथयेतीनोंउड़ते
एकसाथहीगुमहोजाते
एकआँखकेसपनेजैसे
आसमानकेसायेजैसे
एकरातकेतीनपखेरूँ...

पँखोंकीआवाज़नहींहै
परडँडी-निशाननहींहै
धरतीकाआकाशनहींहै
दूरदेशआसारनहींहै

एकरातकेतीनपखेरूँ
इककाला
इकगोरा
औरसाँवलाएक

पिताकीसलाह, एकदर्शन 

कटीपतंगोंकेपीछेनहींभागते,
वेकिसीकीनहींहोती...
काटनेवालोंकीभीनहीं।
 

आजकीशर्त 

बेशर्तजीनाभी
सीखलियाहमने
शर्तबसयहीहै
कालमेंकलनाहो
जोहोनाहै
आजहीहो


भगदड़ 

ख़्यालों कीभीड़में, चलीहैतीरथपरख़ुमारी
जानतीनहीं रौंदी जाएगी, जबभगदड़ मचेगी भारी


खिड़कीऔरबारजा 

क्याकहूँ
कैसे बताऊँ
कि इनलम्बीइमारतोंकीखिडकियोंमेंउजाला,
और बारजाओं मेंअँधेरा
क्यूँरहताहै
क्याकहूँ
कैसे बताऊँ?

रात (09.09.2012)

कुछछूटा
कुछटूटा
बदलासमय
कालकापहियाघूमा

कुछबिखरा
कुछसिमटा
बदलामंज़र
आँखकापर्दाढलका

सख्तहोगया
नर्मखरगोशसा, जिगर
बेहोश, सोगया
गर्मगोदसा, शहर


सजीलाजानवर 

आदमी:
रातकोसोता
अगलीसुबहकेकपड़े
लगाकरकरीनेसे.

आदम-शरीर :
रोज़कासपना
कलफ़लगीचमड़ीसा
ज़्यादानंगाजानवर से.



पूरारिक्त 

एकपूराजीवन
एकदिन
आधा-अधूरासा
पूराहोजाता
वो, जोसबनज़रआता
होतामहसूसकभी
वो, जोकभीसुकूनदेता
दुखताकभी
वोसब
एकदिन
भरतेभरते  पूरा
रिक्तहोजाता 


यात्रा

बाहरगुज़रना
भीतरचलना
बसमेरीबेटी
अपनाहाथपकड़ना 

भ्रम

छन्नसेगिरा जीवनछिटककर
औरएकहीसंसारबंटगयाइतनेटुकड़ोंमें
केहरटुकड़ेमेंबसगया अपना-अपनासंसार
वो संसार, दीखताहैजोवैसा
जैसावोहैहीनहीं 


जज़्ब 

दबालेताहूँशब्द
भींचकेहोंठ
खींचलेताहूँटीस
भरकेसांस
औरभलाहोतेहैंकैसे
जज़्बयेजज़्बात !



सीखनासीखोमियाँ

गुज़रमेंबसर सीखो मियाँ
एकग़लतीकी सज़ाएकसीख़होनीचाहिये
दूसरीगलतीनहीं



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