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रवीन्द्र जैन की ग़ज़लें

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जाने -माने गीतकार, संगीतकार रवीन्द्र जैनअच्छे कवि थे. हाल में ही उनका देहांत हुआ तो उनकी कविताओं की किताब 'दिल की नज़र से'की याद आई. उसकी कुछ चुनिन्दा ग़ज़लें आपके लिए- मॉडरेटर 
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1.
तमाम रिश्तों से नातों से कट गया हूँ मैं,
निकल के दुनिया से खुद में सिमट गया हूँ मैं

किसी की चाह न बाकी न राब्ता बाकी
तलब की राह से अब दूर हट गया हूँ मैं

ये रौशनी तो दिया बुझने के करीब की है
दिए के तेल सा घट घट के घट गया हूँ मैं

पलट के जाना था इक दिन खुदा के सिम्त मुझे
कि आज ही से उधर को पलट गया हूँ मैं

किसी की शक्ल में घर लौटना नहीं मुमकिन
हजारों, लाखों, करोड़ों में बंट गया हूँ मैं.

2.
बेकली, बेखुदी, बेबसी दे गया
कुछ नए तजुर्बे अजनबी दे गया

आज ही उससे पहचान मेरी हुई
जिंदगी भर का रोग आज ही दे गया

सोचने के लिए पल की मोहलत न दी
जागने के लिए इक सदी दे गया

ले गया जानो-दिल जिस्म से खींचकर
हाँ मगर रूह की ताजगी दे गया

उसकी सौदागरी में भी इन्साफ था
जिंदगी ले गया जिंदगी दे गया

उसके आ जाने से हर कमी मिट गई
जाते जाते वो अपनी कमी दे गया

3.
चार दिनों की प्रीत जगत में चार दिनों के नाते हैं
पलकों के परदे पड़ते ही सब नाते मिट जाते हैं

जिनकी चिंता में तू जलता वे ही चिता जलाते हैं
जिन पर रक्त बहाए जल सम जल में वही बहाते हैं

घर के स्वामी के जाने पर घर की शुद्धि कराते हैं
पिंड दान कर प्रेतात्मा से अपना पिंड छुडाते हैं

चौथे से चालीसवें दिन तक हर इक रस्म निभाते हैं
मृतक के लौट आने का कोई जोखिम नहीं उठाते हैं

नातों की क्षणभंगुरता को सतगुरु हमें बताते हैं
उन नातों का मोह न कर जो दुर्बल तुझे बनाते हैं  

'दिल की नज़र से'का प्रकाशन राजपाल एंड सन्ज'ने किया है 





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