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मिरांडा हाउस, बाकरगंज के सैयद और एक यादगार सुबह

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कल एक महत्वपूर्ण घटना का गवाह बना. असगर वजाहत की पुस्तक ‘बाकरगंज के सैयद’ का लोकार्पण मिरांडा हाउस कॉलेज में छात्राओं और अध्यापक-अध्यापिकाओं के बीच हुआ. कैम्पस की ओर जाने की राजपाल एंड सन्ज की मुहीम का यह पहला आयोजन था. कहा जा सकता है यादगार आयोजन था. जिस उत्साह के साथ अध्यापिकाओं ने, छात्राओं ने अपने लेखक से गुफ्तगू की, हमारे समय के सबसे बेजोड़ किस्सागो असगर वजाहत के अनुभव सुने, उनसे किस्से सुने वह सच में उत्साहवर्धक था. मुझे नहीं याद आता है कि असगर वजाहत जैसे पाए के लेखक की इतनी पहत्वपूर्ण किताब का इस तरह से लोकार्पण हुआ हो. राजपाल एंड सन्ज का यह प्रयास लेखक को पाठकों से जोड़ने की दिशा में एक मील स्तम्भ की तरह है जिसे आने वाले समय में नजीर की तरह पेश किया जायेगा.

‘बाकरगंज के सैयद’ अपने आप में एक लोकप्रिय इतिहास के पाठ की तरह है और ‘हंस’ पत्रिका में पढ़े इसके कुछ अंशों के आधार पर यह कह सकता हूँ कि इस साल की यह मेरी सबसे पसंदीदा किताब है जिसमें किस्सागोई का आनंद भी है और बौद्धिक सुकून भी. यह दुर्लभ संयोग आजकल कम ही मिलता है. आजकल तो पांच पांच लाइन की कहानियाँ छापकर ही एक प्रकाशक और संपादक महोदय यह समझते हैं कि किताबों की दुनिया में बड़ी क्रांति उन्होंने कर दी है. उस भ्रान्ति से निकलने की जरुरत है. हम अच्छा साहित्य भी पाठकों के बीच लेकर जाएँ तो वे उसको भी हाथोहाथ लेते हैं. कल कॉलेज में लगी पुस्तक प्रदर्शनी में जिस तरह से छात्राएं किताबों पर टूट पड़ी थी वह अपने आप में यह बताने के लिए काफी है.

छात्राएं काफी तैयारी के साथ आई थी उन्होंने असगर साहब से यह सवाल भी पूछा कि समाज में बढती असहिष्णुता को लेकर जिस तरह से लेखक साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटा रहे हैं उसको लेकर वे क्या सोचते हैं. असगर साहब ने बड़ा संतुलित जवाब दिया कि जी लेखक ऐसा  कर रहे हैं उनके इस फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए लेकिन पुरस्कार लौटाने को ही प्रतिरोध का पैमाना नहीं मान लिया जाना चाहिए.


लेखक ब्रांड बने, उसकी व्याप्ति और अधिक अपने समाज में हो उसके लिए इस तरह के आयोजन जरूरी हैं. असगर साहब को बधाई, सबसे बढ़कर राजपाल एंड सन्ज को बधाई जिसने यह पहल की. अभी तीन कॉलेजों में असगर वजाहत की तीन और किताबों के ऊपर आयोजन होने हैं. 

-प्रभात रंजन 

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