इन दिनों विश्वविद्यालयों की स्वायत्तात का मुद्दा जेरे-बहस है. इसको लेकर एक विचारणीय लेख कृष्ण कुमारका पढ़ा 'रविवार डाइजेस्ट'नामक पत्रिका में. आपके लिए प्रस्तुत है- मॉडरेटर.
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रोहितबेमुलाकीआत्महत्याएकप्रश्नभीरुसमाजमेंबहसऔरविवादकाविषयबनजाए, यहआश्चर्यकीबातनहींहै।यदिसहभावजैसीकोईचीजहमारेसमाजमेंआंशिकमात्रामेंभीहोतीतोबहसकीजगहहमपश्चात्तापकरतेऔरसोचतेकिहमारेबेहतरविश्वविद्यालयभीइतनेखोखलेक्यांहैं।क्यानहींहैहैदराबादकेंद्रीयविश्वविद्यालयकेपास? बड़ा-सापरिसरअच्छीइमारतें, कमछात्रसंख्या, अच्छापुस्तकालय, कालिजोंकेझंझटसेमुक्ति, केंद्रकाउदारवित्त-सबकुछहोतेहुएभीविश्वविद्यालयवीराना - साहै।कुछमहीनेपहलेमैंउसछोटी-सीझीलकीसुंदरतादेखनेकाकौतूहललिएगेस्टहाउससेसौकदमपीछेगया।झीलकेइर्द-गिर्दकीचट्टानोंपरबैठनासंभवनथाक्योंकिइनपरशराबकीटूटीहुूईबोतलेंकाकांचबिखराथा।युवाओंकीबस्तीमेंयहदृश्यएकबीहड़अन्तसकासंकेतदेताथा।किसीनकिसीसूरतमेंऐसाअन्तसदेशकेहरविश्वविद्यालयऔरकालिजकेभीतरछिपामिलजाएगा।हैदराबादमेंवहयकायकबाहरआगयाहै।उसेयथाशीघ्रवापसभीतरघकेलनेऔररोहितप्रसंगकोभुलादेनेकहरसंभवकोशिशहोरहीहै।
इसबीचजातिकेआधारपरभेदभावकीचर्चाशुरूहोगईहै।यहचर्चाकिस-किसनीतिकोछूसकेगीयाकुछदिनोंमेंशांतहोजाएगी, कहनाकठिनहै।कुछसमयपहलेजबकिविश्वविद्यालयअनुदानआयोगकेपैसेसेअनुसूचितजातियोंकेछात्रोंकेलिएपृथकहॉस्टलकईपरिसरोंमेंबनाएगएथेतोकिसीनेनहींपूछाथाकिक्याऐसाअलगावशिक्षानीतिकाअंगहै।आजहोरहीचर्चामेंछात्रसंगठनोंकेबीचअलगावभीशमिलहो, तभीचर्चाएकबृहत्तरपरिप्रेक्ष्यपासकेगी।आखिरयहचर्चाएकऐसीव्यवस्थापरहैजोभारतकीसामाजिकताकाआधारहै।भेदभावउसकाढांचागतस्वभावहै।
जातिपरआधारितसमाजव्यवस्थाकोशिक्षाकिसहदतकप्रभावितकरपाएगीयहप्रश्नदोकारणोंसेवाजिबठहरताहै।पहलाकारणहैकिजातिएकपुरानीव्यवस्थाहैऔरउसकीजड़ोंकेआगोशसेसामाजिकतीनचीजोंपरजातिकीपकड़देशकेकिसीभीहिस्सेमेंदेखीजासकतीहै।येहैंशादी, पेशाऔरभोजन।इतनेबुनियादीपक्षोंकोसमेटनेवालीसंस्थाकेएककमजोरशिक्षाव्यवस्थाकितनाप्रभावितकरसकतीहै? इसशंकाकोछोड़भीदेंतोदूसरीशंकाकाकारणकममजबूतनहींहै।प्राचीनभारतकीशिक्षाकागुणगानकियाजाताहै, वहजातिकीव्यवस्थाऔरवर्णकीअवधारणाकेप्रतिविद्यार्थियोंकेमनमेंकोईखलबलीमचातीहो, इसकेप्रमाणढूंढनाकठिनहोगा।जातिहीक्यों, स्त्रीकेसीमाबद्धजीवनपरसवालउठानाप्राचीनकालकीशिक्षासिखातीहो, ऐसासंकेतयासबूतढूंढनाभीमुश्किलहोगा।शिक्षाकाकामज्ञानदेनाहैयाचेतनाजगाना, यहप्रश्नआधुनिककालकेशिक्षा-दर्शनमेंहीकुछहैसियतपासकाहै, वरनाशिक्षाकी
सामान्यभूमिकाज्ञानऔरव्यक्तित्वकेनिखारकेसंदर्भमेंहीदेखीजानेकीपरम्परारहीहै।चैतन्यलागसदाअपवादरहे।
फिरभीआजकेआमशिक्षितलोगोंमेंयहधारणाकाफीलोकप्रियहैकिशिक्षाकेप्रसारसेजातिअपनेआपकमजोरपड़तीजाएगी।ऐसाहीएकअन्यभ्रमशब्दकोलेकरहै।गांवऔरशहरकोएक-दूसरेकाविलोमबताकरकहाजाताहैकिजातिकीबाततोअबमुख्यत: गांवोंमेंबचीहै, शहरीकरणउसेबहुतकमजोरकरदेताहै।यदियहबातसचहोतीतोबंगलौरकेबादभारतकादूसरासाइबरसिटीकहलानेवालेहैदराबादमेंरोहितबेमुलाकोआत्म्हत्यानकरनापड़ती।परइसप्रसंगपरआनेसेपहलेएकऔरशहरकाजायजालें।उपनिवेशकालमेंजोशहरआधुनिकउच्चशिक्षाऔरनईप्रशासनव्यवस्थाकेकेंद्रबने, उनमेंइलाहाबादकानामविशेषमहत्वरखताहै।बीसवींसदीकीशुरुआतमेंकलकत्ताकेबादअंग्रेजीमेंसाक्षरलोगोंकीसबसेबड़ीआबादीइलाहाबादमेंरहतीथी।वहांसेनाकीछावनीथी, हाईकोर्टथा, एकसमृद्धपुस्तकालयथाऔरएकसम्मानितविश्वविद्यालयथाजिसकीजरूरतोंकेबलपरमुद्रणऔरप्रकाशनकाव्यवसायफलफूलरहाथा।सरस्वतीऔरबालसखाजैसीपत्रिकाएंवहींनिकलीं, महादेवीऔरनिरालाकीआवाजवहींउठी।इसशहरकाविश्वविद्यालयसवासौसालबादभीजातिवादसेग्रस्तहो, यहबातशिक्षाऔरजातिकेरिश्तेकोलेकरकौतूहलजगातीहै।इसविश्वविद्यालयमेंशिक्षकोंकेसंगठनजातिपरआधारितहै।नियुक्तियांजातिकाध्यानरखेबगैरनहींकीजातीहैं, जोकुलपतिजातीयसमीकरणोंकोसंभालनहींपाते, वेयातोअसफलरहतेहैंयाभागखड़ेहोतेहैं।
इलाहाबादकीयहकहानीबतातीहैकिशिक्षाअपनेआपमेंजातिकीकाटनहींहै।जातिएकबड़ीसामाजिकसंस्थाहैऔरवहअर्थव्यवस्थाएवंराजनीतिकोआधुनिकबनानेवालेतत्वोंकोइत्मीनानसेपचासकीहै।फिरभीयहप्रश्नपूछनेलायकठहरताहैकिक्याशिक्षासेइतनीभीअपेक्षानहींकीजासकतीकिवहजातीयभेदभावकोदूरकरनेमेंमददगारहो।ऊंच-नीचपरआधारितजातिव्यवस्थाकाएकबड़ापक्षउनजातियोंसेभेदभावऔरछूआछुतबरतनेकाहैजोवर्णकीअवधारणाऔरश्रेणियोंकेबाहररखीगईं।आजकीशब्दावलीमेंइन्हेंअनुसूचितजातियोंअथवादलितकीसंज्ञादीजातीहै।इनजातियोंकाउत्पीडऩसवर्णजातियोंकेलिएजीवनकीसामान्यताकाहिस्साहै, इसलिएवहअनुभूतिसेओझलरहताहै।जबएकसवर्णमध्यमवर्गीयगृहिणीअपनेघरकासंडासपखारनेवालीमहिलाकोएकअलगप्यालेमेंचायदेतीहैजोसिर्फउसीकेइस्तेमालकेलियेनियतहै, तोइसव्यवस्थामेंसवर्णगृहिणीकोकुछभीअस्वाभाविकनहींलगता।इसीप्रकारस्कूलमेंभोजनबांटेजातेसमयअनुसूचितजातिकेबच्चोंकोअलगपंक्तिबनानेकेलिएकहनेवालेशिक्षककोइसमेंकुछभीअसामान्यनहींलगता।
जाति-व्यवस्थामेंपेशेकासंबंधजन्मसेथा।यहसंबंधपहलेकेमुकाबलेकुछपारम्परिकपेशोंकोलेकरभलेथोड़ाकमहुआहो, सफाईसेजुड़ेकामोंकेसंदर्भमेंमजबूतबनारहाहै।सफाईकर्मचारीनगरपालिकाकाहोयापांचसिताराहोटलका, वहदलितजातिकाहीहोगा, ऐसीअनिवार्यताहमदेशकेकिसीभीभागमेंदेखसकतेहैं।इसकेविपरितभोजनपकानेकेकाममेंसवर्ण, मुख्यत: ब्राह्मण, हीमिलतेहैं।इसपरिदृश्यमेंशिक्षाकीसक्रियताबहुतकममात्रामेंदिखाईदेतीहै।जातिकेबारेमेंज्ञानकभीविश्लेषणकाविषयनहींबनायाजाता।विश्वविद्यालयस्तरपरभीसमाजशास्त्रकोछोड़करकोईअच्छाविभागइसकाउल्लेखनहींकरता।एनसीईआरटीकीबारहवींकक्षाकीपुस्तक'सामाजिकऔरराजनैतिकजीवनÓ एकअपवादहैक्योंकिउसमेंदलितजातियोंकेसाथहोनेवालेनियमितभेदभावकाविश्लेषणकरनेकीकोशिशकीगईहै।ओमप्रकाशवाल्मीकिकीआत्मकथासेलिएगएअंशकीमददसेपरानुभूतिजगानेकाप्रयासशुरूकीकक्षाकेस्तरपरकियागयाहै।
हैदराबादकेकेंद्रीयविश्वविद्यालयकेकुलपतिनेयदिऐसीसामग्रीपढ़ीहोतीतोशायदवेरोहितवेमुलाकेउसपत्रसेविचलितहोजातेजोउसनेआत्महत्यासेएकमाहपहलेउन्हेंलिखाथा।परबड़ाप्रश्नकिसीएककुलपतिकीनिष्ठुरताकानहींहै, भारतकीउच्चशिक्षाकेबीहड़काहै।विश्वविद्यालयकाकामहैकिवहांविचारकीआजादीऔरउड़ानसदासंभवरहे।यहबुनियादीशर्तअबहमारेकिसीविश्वविद्यालयकेबसकीबातनहींरही।धर्म, जाति, विकासऔरराष्ट्रवादकीसंकीर्णतमधारणाएंहमारेकालिजोंऔरविश्वविद्यालयोंकेमाहौलमेंएकअर्सेसेफलती-फूलतीरहीहैं।इनकेसाएमेंहिंसाआएदिनफूटपड़तीहैऔरउसकाडरसदैवबनारहताहै।ऐसीपरिस्थितियोंमेंविचारकीस्वतंत्रताकैसेसंभवहै।रोहितबेमुलाजिससंगठनकासदस्यथा, वहआंबेडकरकीवैचारिकपरम्पराकाअनुयायीहै।आंबेडकरऔरलोहियानेजातिव्यवस्थाऔरकईअन्यबुनियादीमहत्वकेसामाजिकसरोकारोंपरजिसप्रखरतासेप्रश्नकिए, वैसीप्रखरताआजविश्वविद्यालयोंकेपरिसरोंमेंदुर्लभऔरअसुरक्षितहोचुकीहै।इसपरिस्थितिमेंरोहितवेमुलाकीनिराशासमझमेंआतीहै।कोईसाथी, कोईशिक्षकइसनिराशाकेअंधेरेमेंउसकेसाथनहींरहसका, यहविश्वविद्यालयकीसंस्थाईविफलताकाप्रमाणहै।