जाने माने पत्रकार आशुतोष भारद्वाजहिंदी के अच्छे कथाकार भी हैं. उन्होंने अपना पहला उपन्यास लिखा है. उसका अंश पहली बार जानकी पुल के पाठकों के लिए उन्होंने साझा किया है- मॉडरेटर
========================================================
ड्रामा स्कूल के सभी विद्यार्थियों में तुमने उन दोनो को ही क्यों अपना किरदार बनाया, इसकी वजह तो तुम्हें एकदम स्पष्ट होगी; लेकिन तुम यह समझना नहीं चाहते होगे कि आखिर क्यों तुम्हारी वर्णमाला से अक्षर गायब होते जा रहे हैं, क्यों तुम्हारी हालत उस व्यक्ति की तरह हो गयी होगी जो टाइप करना सीख रहा है, सहसा पाता है कि अनेक अक्षर कीबोर्ड के तिलिस्म में खोये हुये हैं, खोजने से भी नहीं मिलते। एक अद्भुत विचार उसके भीतर कुलबुला रहा होगा, वह एक विराट इबारत लिख देना चाहता होगा लेकिन पूरा दिन बुनियादी अक्षरों को ही खोजता रहेगा। कुछ दिन बाद वह विचार अभिव्यक्ति के अभाव में उससे छिटकने लगेगा, उसे अपने विचार की आंच पर शुबहा होगा, उसे अपनी जिंदगी एक कीबोर्ड नजर आयेगी जिसकी काया के भीतर वह अपनी हसरतों की वर्णमाला टटोलता रहेगा।
पहाड़ पर बने ड्रामा स्कूल के उस छोटे से ऑडिटोरियम के मंच पर तुम तीनों खड़े होगे। तुम, तुम्हारे सामने मुस्तकीम और अनन्या। उन दोनो को नहीं मालूम होगा कि जिन शब्दों को तुम कल तक बेबाकी से बरतते रहे होगे, वे सहसा तुम्हारे जीवन से लुप्त होते जा रहे होंगे, और वे दोनो उन खोये शब्दों को खोजने की तुम्हारी प्रक्रिया के माध्यम होने जा रहे होंगे। ऑडिटोरियम से थोड़ा आगे उतरती हुई पहाड़ी ढलान होगी, जिसके बीच एक पगडंडी जंगली चट्टानों और वृक्षों से गुजरती नीचे नदी तक जाती होगी। ऑडिटोरियम की खिड़की के टूटे कांच पर पहाड़ पर अंधेरे में टिमटिमाते घरों की बारीक रोशनियाँ आ ठहरी होंगी।
याद है न, क्या रोल है आपका या फिर से बतला दूँ?
मुस्तकीम ने सिर हिला दिया।
तो ठीक है, शुरु कीजिये।
मुस्तकीम अपनी जगह से दो कदम पीछे गया, अनन्या चार कदम पीछे, दोनो कुछ पल रुक एकदूसरे की ओर तीन कदम आये। तुम मंच से नीचे उतर आये। दीवार पर लगा स्विच ऑफ कर दिया, अब मंच पर सिर्फ एक हैलोजीन चमक रही होगी। ऑडिटोरियम की दीवार पर टंगे तीन मुखौटे अंधेरे में खो जायेंगे। नंगा मंच, कोई फर्नीचर नहीं --- मुस्तकीम के भीतर हल्की सिहरन उठेगी। कुँआरे मंच की छुअन। तुम मंच के ठीक सामने पहली पंक्ति में बैठे होगे। तुम्हारी निगाह दोनो पर ठहर जायेगी, कोई इस दृश्य को देखेगा तो उसे लगेगा कि तुम्हारी आँखों से निकलती रोशनी उन दोनो को चीरती, ऑडिटोरियम की दीवार को फोड़ती बाहर निकल पहाड़ों से जा टकरा रही है।
इस पहाड़ी पर यह ऑडिटोरियम पेड़ पर किसी मचान की तरह टिका था। चार दीवारों के ऊपर टीन का छप्पर। हाँलांकि तुम्हें इस पहाड़ी गाँव में स्थित ड्रामा स्कूल में आये महीना भर होने को आया था, तुम्हें अभी भी यह ख्याल बना रहता था कि जरा जोर की आँधी आई तो यह ऑडिटोरियम भरभरा कर ढह जायेगा, नीचे खाई में लुढ़क जायेगा। दीवार न भी ढही तो टीन का छप्पर तो उड़ ही जायेगा, ड्रामा स्कूल के सभी विद्यार्थी उसके चिथड़ों को खोजने पहाड़ी जंगल में जायेंगे। कुल सत्रह विद्यार्थी थे इस स्कूल में, जब सभी एक साथ जंगल में निकलते थे तो एक छोटी सेना का भ्रम होता था।
मुस्तकीम घुटनों के बल मंच पर बैठा होगा, अनन्या कुछ कदम दूर से उसे देखती होगी। मुस्तकीम फर्श पर पड़ी किसी काल्पनिक चीज को गौर से देख रहा होगा, उसकी आँखों में पहले विस्मय, फिर बारीक भय उतरेगा, अनन्या उसके करीब आ जायेगी, दोनो एक दूसरे को कुछ पल देखते रहेंगे।
मुस्तकीम ने फर्श को आहिस्ते से सहलाया, मानो फर्श पर कोई लेटा हो।
मेरा बेटा था यह। हत्यारों ने पहले गोली चलाई, फिर भी सांस बची रही तो चाकू से गोद दिया --- यह देखिये, छाती पर चाकू का निशान।
यह उन लोगों का साथी नहीं था?
उन लोगों का? झूठ बोलते हैं सब। आप हत्यारों की बात जरा भी न सुनिये।
मुस्तकीम ने फर्श पर उँगलियाँ फिरायीं, उसकी उँगलियों पर एक ताजा लाश का लहू बह आया ।
कोई सबूत है आपके पास?
आप पूरे गाँव में किसी से भी पूछ लीजिये।
पूछ तो मैं लूँगा, उसके अलावा कुछ और हो तो...
अनन्या मंच के अंदर जायेगी, एक पुराना स्कूल का बस्ता ले आयेगी, उसे खोल देगी...कॉपी, किताबें फर्श पर बिखर जायेंगी। यह देखिये...स्कूल जाता था। गाँव के बाहर, थाने के पीछे वाला स्कूल। क्या पुलिस थाने के पीछे स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा उन लोगों का साथी हो सकता है?
मुस्तकीम उन कॉपियों को टटोलेगा। एक कॉपी में लिखा होगा ----- “Thy, Thou, Thee का प्रयोग पुरानी अंग्रेजी में किया जाता था। अब ऐसे शब्दों से बचना चाहिये। लेकिन कविता में या ईश्वर के लिये इनका प्रयोग कर सकते हैं।”
मुस्तकीम इस इबारत को बोल कर पढ़ेगा, उसके चेहरे के भाव सहसा बदल जायेंगे। कॉपी के ऊपर लिखा होगा --- लच्छू मंडावी, कक्षा आठ।
यह इस बच्चे ने लिखा है?
अनन्या सिर हिला देगी। मुस्तकीम देर तक कॉपी के उस पन्ने को देखता रहेगा। अनन्या उससे कुछ कहेगी लेकिन उसका ध्यान उस पन्ने पर ही अटका रहेगा।
आप कह रहीं हैं यह बच्चा कभी इस गाँव से बाहर नहीं गया था?
अनन्या ने सिर हिला दिया।
यह चीजें गाँव के स्कूल में पढ़ाते हैं क्या? मुस्तकीम ने वह पन्ना अनन्या को दिखाया।
अनन्या ने उसके हाथ से कॉपी ले ली, पन्ने पलटती रही, उसके चेहरे से लगा कि वह पढ़ना नहीं जानती।
मुस्तकीम बस्ते की अन्य कॉपियाँ टटोलेगा...यह कुछ और भी लिखता था क्या? कोई डायरी वगैरा?
अनन्या को कुछ समझ नहीं आयेगा। मुस्तकीम फिर से उसी कॉपी को टटोलेगा।
पूरे ऑडिटोरियम में अंधेरा होगा, सिर्फ वे दोनो स्याह आकाश में दो सितारों की तरह हैलोजीन की रोशनी में मंच पर चमक रहे होंगे। मुस्तकीम उसके बस्ते को खोल कर फर्श पर रख देगा। एक एक कॉपी पलटेगा, हरेक पन्ने में लिखी इबारत को निगाहों से टटोलेगा। जब देर तक भी मुस्तकीम सिर नहीं उठायेगा, अनन्या आगे चलती हुयी मंच की कगार पर आ जायेगी, नीचे बैठे तुम्हें देखेगी। अनन्या को देख लगेगा कि मुस्तकीम शायद अपने रोल से बाहर आ गया है, वह तुमसे पूछना चाह रही है कि क्या किया जाये। अनन्या का चेहरा यह भी कह रहा होगा कि यह नयी बात नहीं है, मुस्तकीम इस दृश्य पर पहले भी अपने किरदार से बाहर निकल गया होगा। वह थक कर मंच पर बैठ जायेगी। तुम कुछ पल प्रतीक्षा करोगे, सहसा मुस्तकीम उस कॉपी को ले आगे आ जायेगा, मोनोलॉग की मुद्रा में बोलने लगेगा —
“यह पंद्रह साल का एक आदिवासी बच्चा था। जंगल में रहता था, शायद ही कभी अपने गांव से बाहर गया हो। गांव के ही स्कूल में पढ़ता था। इसकी कॉपी में यह लिखा हुआ है —- Thy, Thou, Thee का प्रयोग पुरानी अंग्रेजी में किया जाता था। अब ऐसे शब्दों से बचना चाहिये। लेकिन कविता में या ईश्वर के लिये इनका प्रयोग कर सकते हैं…किसने इस बच्चे को यह सिखाया होगा? दूर दूर तक शायद ही किसी को Thy, Thou, Thee का अर्थ पता होगा। मैंने यह कॉपी इसके स्कूल के अध्यापकों को भी दिखाई है…किसी को समझ नहीं आया कि आखिर इसकी कॉपी में यह क्यों लिखा हुआ था, आखिर कैसे इसने यह लिख दिया…क्या यह कविता लिखता था? मैंने इसकी बाकी कॉपियाँ देखी हैं, किसी में कहीं कोई संकेत नहीं है…यह अकेली इबारत आखिर कहाँ से आयी?”
मुस्तकीम बोलता रहेगा, इससे बेखबर कि अनन्या बगल में खड़ी उसे सुन रही है। तुम आखिर में उठ कर बिजली जला दोगे, पूरे हॉल में कई सारे बल्ब चमक उठेंगे। तुम कुर्सी से उठ मंच के करीब आ जाओगे।
क्या हुआ मुस्तकीम?
मुस्तकीम तुम्हें देखेगा, चुप रहा आयेगा। तुम विस्मय से सिर हिलाओगे।
रहने दो इसे, तुम हाथ बढ़ाओगे, मुस्तकीम तुम्हें कॉपी दे देगा। तुम उसे बंद कर पीछे अपनी कुर्सी पर पटक दोगे।
जहर के रंग वाला करते हैं, याद है न पूरा?
दोनो ने सिर हिला दिया।
दो मिनट का ब्रेक लो, मंच के दो चक्कर लगाओ, फिर करते हैं।
मुस्तकीम और अनन्या पूरे मंच की परिक्रमा की, अपनी जगह आ खड़े हो गये। तुम फिर से बत्ती बुझाओगे, पूरे हॉल में अंधेरा, मंच पर फिर से हैलोजीन चमक उठेगी। मुस्तकीम और अनन्या मंच के दो विपरीत छोर पर चले जायेंगे। उन दोनो को तब तलक नहीं मालूम होगा कि वे दोनो मेरे जीवन पर लिखे जा रहे तुम्हारे उपन्यास के किरदारों की भूमिका निभा रहे होंगे, कि वे दोनो तुम्हारे लिये महज आख्यायकीय औजार होंगे, तुम उनके जरिये अपने आख्यान का निर्वाह कर रहे होगे।
***
कुछ पल बाद अनन्या चलती हुई आयेगी, हैलोजीन के प्रकाश से थोड़ा दूर घुटनों में सिर दिये फर्श पर बैठ जायेगी। मुस्तकीम दूसरे छोर से आयेगा, उसके हाथ में एक नोटबुक होगी। वह अनन्या के करीब आ रुक जायेगा, लिखने की मुद्रा में अपनी नोटबुक और पैन का ढक्कन खोल लेगा।
आपके पति के भाई ने मुझे सब कुछ बताया।
अनन्या सिर नहीं उठायेगी। मुस्तकीम नोटबुक में कुछ लिखेगा।
मैं आपसे थोड़ी देर बात कर सकता हूँ?
अनन्या सिर नहीं उठायेगी। मुस्तकीम नोटबुक में कुछ लिखेगा।
आपने अपने पति की बॉडी देखी थी न?
अनन्या सिर नहीं उठायेगी। मुस्तकीम नोटबुक में कुछ लिखेगा।
पुलिस का कहना है कि उन्होंने जहर खा लिया था...आपको मालूम है न कि जहर के बाद आदमी के शरीर का रंग बदल जाता है...आपको याद है उनके चेहरे का रंग? कुछ बदला सा लग रहा था क्या?
अनन्या सिर नहीं उठायेगी। मुस्तकीम नोटबुक में कुछ लिखेगा।
याद कीजिये हो सके तो...हल्का नीला पड़ जाता है आदमी। कुछ बदला सा लग रहा था क्या?
अनन्या सिर नहीं उठायेगी। मुस्तकीम नोटबुक में कुछ लिखेगा।
उनकी बॉडी इसी रास्ते आने वाली है न?
अनन्या सिर नहीं उठायेगी। मुस्तकीम नोटबुक में कुछ लिखेगा।
आप लोग एंबुलैंस को थाने पहुँचने से पहले ही यहीं रोक लेंगे न?
अनन्या सिर नहीं उठायेगी। मुस्तकीम नोटबुक में कुछ लिखेगा।
एंबुलैंस में पुलिसवाले भी होंगे, वे बॉडी को पहले थाने ले जाना चाहते हैं... क्या आपको लगता है आप उन लोगों से उनकी बॉडी यहीं ले पायेंगे?
अनन्या सिर नहीं उठायेगी। मुस्तकीम नोटबुक में कुछ लिखेगा।
आपके पति के भाई ने बताया कि आप माँ बनने वाली हैं।
अनन्या सिर नहीं उठायेगी। मुस्तकीम नोटबुक में कुछ लिखेगा।
कितने महीने का है?
अनन्या सिर नहीं उठायेगी। मुस्तकीम नोटबुक में कुछ लिखेगा।
इसका कुछ नाम सोच रखा था क्या उन्होंने?
अनन्या सिर नहीं उठायेगी। मुस्तकीम नोटबुक में कुछ लिखेगा।
आप दोनो ने मिल कर सोचा हो?
अनन्या सिर नहीं उठायेगी। मुस्तकीम नोटबुक में कुछ लिखेगा।
क्या मैं आपकी एक तस्वीर ले सकता हूँ?
तभी तुम अपनी कुर्सी से उठ जाओगे, बत्ती जला दोगे, मंच के करीब आ जाओगे। मुस्तकीम और अनन्या तुम्हें चौंक कर देखेंगे। अनन्या उठ कर खड़ी हो जायेगी। दोनो मंच पर चलते हुये तुम्हारे करीब आ जायेंगे।
नहीं यार, यह ठीक नहीं बना है। मैं सोच कुछ और रहा था, लिख कुछ और गया हूँ। मुस्तकीम का किरदार एकदम ऐसा नहीं है जैसा इस समय नजर आ रहा है। इसको फिर से लिखता हूँ...
मुझे भी यही लग रहा था, यह किसी और दिशा में बहा जा रहा है। मुस्तकीम कहेगा।
तुम कुछ सुझाओ, कहानी तो तुम्हें भी मालूम है।
आपने पूरी कहानी बतायी ही कहाँ है सर...सिर्फ थोड़े से सीन ही दिये हैं।
सीन के आधार पर ही कुछ बताओ।
आपको इस सीन में कुछ संवाद अनन्या को भी देने चाहिये, हम दोनो की बातचीत से ही यह दृश्य विकसित होना चाहिये।
लेकिन वह उन्नीस साल की आदिवासी लड़की है, कभी अपने जंगल के गाँव से बाहर नहीं आयी। तुम्हारी भाषा नहीं जानती है। थोड़ी बहुत जानती भी होगी तो ऐसी हालत में वह किसी पत्रकार से क्या संवाद करेगी?
तो फिर मुझे इतने डायलॉग न दें। मैं उससे सिर्फ एक दो प्रश्न पूछूँगा, वह जवाब नहीं देगी तो मैं दूर चला जाउँगा, उसे दूर से चुपचाप देखूँगा, कॉपी में लिखूँगा। साइलैंट ऑबर्ज्वेशन। क्यों अनन्या? मुस्तकीम ने अनन्या की तरफ देखा।
तुम चारों तरफ देखोगे, खिड़की तक आ जाओगे। बाहर धुंध भरे अंधेरे में सोये पहाड़ पर घरों की रोशनियाँ किसी स्याह नदी में दीपकों की तरह तिर रहीं होंगी। पहाड़ के विराट लिबास पर रंगबिरंगे फुंदने की तरह टंगे ये घर दिन भर धूप में चमकते होंगे, रात इनके रंगों को समेट ले जाती होगी। तुम वापस मंच की ओर मुड़ गये।
ठीक है, इसे बाद में देखते हैं। वो पाँच बकरियों वाला करते हैं, जिसमें अनन्या की लीड है...दोनो को याद है न?
दोनो सिर हिला देंगे। तुम फिर से बत्ती बुझाओगे, पूरे हॉल में अंधेरा, मंच पर फिर से हैलोजीन चमक उठेगी। मुस्तकीम और अनन्या मंच के दो विपरीत छोर पर चले जायेंगे। तुम कुर्सी पर रखी कॉपी उठा बैठ जाओगे।
मुस्तकीम और अनन्या चलते हुये आयेंगे, करीब आ रुक जायेंगे। अनन्या मंच पर लेट जायेगी। मुस्तकीम कुछ पल चारों तरफ देखेगा, इर्द गिर्द घूमेगा, उसकी चाल से ऐसा लगेगा कि उसे नहीं मालूम कोई नीचे लेटा है। सहसा लेटी हुई अनन्या बोलने लगेगी -----
“ग्यारह दिन हुये मैं जमीन के छः हाथ नीचे लेटी हूँ। मेरे शरीर पर एक थाली, एक कटोरी, दो पुरानी फ्रॉक और एक रस्सी है, बालों में लगाने की एक क्लिप भी। मेरी मुठ्ठी में चार कागज़ हैं, मेरे पसीने से पसीजते हुए। यह जगह बहुत संकरी है, मैं चाहती हूँ इस सामान को कहीं करीने से लगा दूँ, मिट्टी को खुरचने की कोशिश भी करती हूँ कि एक आला, परकोटा यहाँ जमीन के अंदर बना लूँ लेकिन नहीं हो पाया है। मेरी कमर के नीचे एक गोल सुराख है, ऐसा ही एक सुराख मेरी दाहिनी छाती पर भी है। एक सुराख में चमकते पीतल का एक नुकीला कारतूस अभी भी फंसा है, दूसरे सुराख में भी ऐसे ही पीतल का कारतूस फंसा था लेकिन उसे बाहर निकाला जा चुका है। बाहर बरसात हो रही है, पानी यहाँ तक बहकर आ रहा है। मेरे इर्द गिर्द की मिट्टी गीली हो दरकने लगी है। मुझे डर है ये कागज़ भीग कर गल न जायें। मैं उन्हें फूँक मार कर सुखाती हूँ।”
अनन्या से कुछ कदम दूर खड़े मुस्तकीम को यह आवाज सुनाई देगी, लेकिन उसे समझ नहीं आयेगा आखिर यह आवाज कहाँ से आ रही है। वह चारों तरफ बौखलाया सा देखेगा लेकिन उसे कुछ नहीं सूझेगा।
लेटी हुई अनन्या बोलती रहेगी ----
“आप इतनी दूर से इस पहाड़ी जंगल में आये हैं। मेरे परिवार से, पूरे गाँव से मेरे बारे में पूछ रहे हैं। आपके हाथ में भी ये चार कागज़ हैं, पहले पर मेरा नाम और मेरी उम्र लिखी है पंद्रह साल, तीसरे पन्ने पर लिखा है ---- Cause of death excessive bleeding due to bullet wounds, आखिरी पन्ने पर सात शब्द अंग्रेजी में लिखे हैं जिन्हें मैं जीवित होती तो कभी न समझ पाती लेकिन अब समझने लगी हूँ ---- Having dilated vagina, habitual about sexual intercourse.
आपको अचंभा हुआ जब मेरी बहन ने आपको बताया कि मैं पाँच बकरियों के साथ खेलती थी, पूरे जंगल में मेरी दोस्ती सिर्फ उन बकरियों से थी। आपने उससे इन बकरियों के नाम पूछे, उन्हें तुरंत अपनी कॉपी में लिखा --- सुकिनी, सुक्ता, सुरीला, भूतनी, लड़गुदनी। पिछले पंद्रह दिनों में मेरे घर आप जैसे कई लोग आये हैं, लेकिन आप पहले इंसान हैं जिसका ध्यान इन बकरियों पर गया और जिसने इनके नाम भी पूछे।
कल रात देर तक सुकिनी यहाँ बैठी रही थी, वह अपनी रस्सी की गंध पहचानती है। मेरी टाँगों के बीच बहते लहू से अंदर की मिट्टी लाल हो रही है, लड़गुदनी को यह सुर्ख गंध पागल कर देती है, वह बहुत जल्दी यहाँ आती होगी।”
अचानक अनन्या उठ कर खड़ी हो जायेगी, उसकी आवाज का स्रोत मंच पर खोजते मुस्तकीम के पास जा खड़ी हो जायेगी। दोनो कुछ पल एक दूसरे को देखते रहेंगे। दोनो के हाथ में कुछ कागज़ होंगे। पूरे मंच पर अंधेरा होगा, हैलोजीन की रोशनी में दोनो चमक रहे होंगे। अनन्या बोलती जायेगी----
मैं वही हूँ जिसके ये कागज़ आपके पास है।
मुस्तकीम विस्मय से उसे देखेगा।
आप जो चीज मेरे पिता से पूछना चाहते हैं मुझसे पूछ सकते हैं।
नहीं, मैं आपसे नहीं, आपकी उन पाँच सखियों से बात करना चाहता हूँ। क्या आप उनसे कहेंगी कि वे थोड़ी देर मुझसे बात कर लें।
आप मेरी कथा जानने आये हैं या उनकी?
वे आपकी कथा की साक्षी हैं, न मालूम क्यों मुझे लगता है कि आपके बारे में कई चीजें ऐसी होंगी जो आपको भी नहीं मालूम होंगी, सिर्फ वे ही जानती होंगी।
अब तक स्कूल के कुछ और विद्यार्थी वहाँ आ गये थे, हॉल के बाहर खड़े, खिडक़ी के कांच से कौतुहल से झांक रहे थे। पूरे ड्रामा स्कूल में बात फैल चुकी थी कि तुम मुस्तकीम और अनन्या को अपनी किसी कहानी का पात्र बना रहे हो, उस कहानी को शायद मंचित भी करोगे जिसकी रिहर्सल इस वक्त चल रही है, लेकिन किसी को भी उस कहानी के बारे में नहीं पता था। तुमसे वे पूछ नहीं सकते थे, मुस्तकीम और अनन्या को तुमने किसी से कुछ भी कहने को मना किया था, वैसे भी उन दोनो को पूरी कथा नहीं मालूम थी, सिर्फ उतना जो तुमने बताया था। उन दोनो में और बाकी विद्यार्थियों में सिर्फ यह फर्क था कि वे मंच पर थे, बाकी सभी बाहर। मंच पर होने के बावजूद उन्हें नहीं मालूम था कि कथा में आगे क्या होने वाला है। बाकी सब बाहर से झांक कर, कांच के परे दोनो के हावभाव देख कथा का अनुमान लगाया करते थे। वे दोनो अपने संवादों के आधार पर आगे आने वाले दृश्य का अनुमान लगाते थे। सबको लगता था पूरी कथा सिर्फ तुम्हें मालूम है, सिर्फ तुम्हें मालूम था कि तुम्हें भी कुछ नहीं मालूम। तुम भी इस कथा को उसी तरह खुलते-बंद होते, बनते-बिगड़ते देख रहे हो जिस तरह कांच के परे से झांकते विद्यार्थी। इस बीच अनन्या मंच के पीछे चली गयी थी, मुस्तकीम अकेला रह गया था। कुछ देर बाद वह मंच के दाहिनी ओर से चारों पंजों पर चलती हुई मुस्तकीम के पास आ गयी। उसने किसी जानवर का मुखौटा पहन रखा था।
पूछिये, क्या जानना चाहते हैं?
यहाँ मुस्तकीम का संवाद होना था -- कौन हो तुम? जिस पर अनन्या कहती सुरीला हूँ मैं, फिर मुस्तकीम को कहना था कि क्या उस रात तुम थीं उसके साथ, जिसके बाद अनन्या कथा सुनाती उस रात की। लेकिन मुस्तकीम कहेगा तुम सुकिनी हो, सुक्ता हो, सुरीला हो, भूतनी हो या लड़गुदनी हो? इस अचानक आये वाक्य से अनन्या को चौंकना चाहिये था, मुस्तकीम को बारीक संकेत करना चाहिये था कि वह अपनी पंक्ति भूल रहा है, लेकिन वह बिना रुके बोलेगी --- मैं सुकिनी हूँ, सुक्ता भी, सुरीला भी, भूतनी और लड़गुदनी भी हूँ।
मुस्तकीम भी तुरंत कहेगा -- क्या तुम हमेशा उसके साथ चलती थीं?, जिसका अनन्या जवाब देगी, नहीं, वह हमेशा हमारे साथ चलती थी। इसके बाद मुस्तकीम पूछेगा, उस रात कौन किसके साथ चल रहा था? तब मुखौटा पहने, चारों पैरों पर चलती अनन्या बोलेगी उस रात सभी एकदूसरे के साथ चल रहे थे। अब मुस्तकीम कहेगा, अगर सभी एकदूसरे के साथ चल रहे होते तो सभी एक साथ वहाँ पहुँचते जहाँ सिर्फ वह पहुँची है। तब अनन्या मंच का एक चक्कर लगा कर जवाब देगी --- पहुँचना सबको वहीं है, कोई पहले, कोई थोड़ा बाद में पहुँचेगा।
अगर सभी रास्ते वहीं जाते हैं तो फिर हम यानी मैं और तुम भी ऐसे ही किसी रास्ते पर हैं जहाँ थोड़ी देर में उससे मुलाकात होने वाली है। और अगर हमें, यानी मुझे और तुम्हें, उससे आखिर में मिलना ही है तो चलो एक साथ चलते हैं, रास्ते में तुम उस रात की कथा कहती चलना, रास्ता भी कट जायेगा। नहीं तो वहाँ पहुँच उससे ही पूछ लेंगे क्या हुआ था उस रात, वह बेहतर बता देगी। हम दोनो रास्ते में अपनी कथा एकदूसरे को सुनाते चलेंगे।
और अभी जो तुम यहाँ आये हो, इस जंगल में, उसका क्या? तुम यहाँ आने का अपना मकसद भूल गये?
जब तुम कह ही चुकी हो कि सभी मकसद एक ही जगह हासिल होते हैं, तो फिर चलो उस आखिरी मकसद को ही टटोला जाये।
कहाँ चलोगे?
काफी देर से दोनो एक ही जगह, मंच के बीच में खड़े होंगे। अनन्या चार पैरों पर, सिर उठाकर बात करती होगी, मुस्तकीम थोड़ा नीचे झुककर बोलता होगा। अब मुस्तकीम चलता हुआ मंच के दाहिनी ओर आ जायेगा। अनन्या अपनी जगह ही रहेगी। कांच के परे पहाड़ी पर रात की रोशनियाँ आकाश में सितारों की तरह टंगी होंगी। तुम मंच के सामने विस्मय से देख रहे थे मुस्तकीम और अनन्या की इस आकस्मिक उभरी कथा को खुलते हुये। बीच में तुम्हारा मन हुआ उन्हें रोक दो, उनसे कहो कि वे भटक रहे हैं, लेकिन तुम कौतुहल से देखते रहोगे। यह कथा तुम्हारी थी, मुस्तकीम और अनन्या तुम्हारी ही कथा को जी रहे थे लेकिन अचानक से वे दोनो तुम्हारी कथा से बाहर आ गये थे। मंच तुम्हारा ही था, खिड़की के बाहर से झांकते अन्य किरदारों को अभी भी यही लग रहा था कि मुस्तकीम और अनन्या तुम्हारी ही पंक्तियों को जी रहे हैं, लेकिन सिर्फ तुम जानते थे मंच पर क्या घटित हो रहा है, जहाँ इस वक्त मुस्तकीम कांच के बाहर इशारा करता होगा।
वहाँ देखती हो।
अनन्या अब चारों पैरों पर चलती हुई मुस्तकीम तक आ जायेगी। हैलोजीन की रोशनी अभी भी मंच के बीच में बिखर रही होगी। मुस्तकीम और अनन्या लगभग अंधेरे में खड़े होंगे। मुस्तकीम बोलेगा...
इस वक्त शायद अंधेरे में नहीं दिखाई दे रहा होगा लेकिन उस पहाड़ी पर एक पीला झंडा फरफराता रहता है, मैं उसे रोज देखता हूँ लेकिन नहीं समझ आता उस सूनी पहाड़ी पर आखिर किसने वह झंडा फहराया होगा। सिर्फ एक झंडा, और कुछ भी नहीं है वहाँ।
अनन्या अपने पिछले पंजों पर उचक कर खिड़की से बाहर देखने की कोशिश करने लगी, लेकिन खिड़की ऊँची होगी, वह उस तक नहीं पहुँच पायेगी।
चाहो तो अपना यह मुखौटा हटा सकती हो, अब हमें किसी नकाब की जरूरत नहीं है। अब हम इस कथा की, अपनी कथा की दिशा खुद ही तय करेंगे।
मुस्तकीम खुद ही अनन्या का मुखौटा उतार देगा, अनन्या फिर से दोनो पैरों पर खड़ी हो जायेगी।
मंच के सामने बैठे तुम भौंचक रह जाओगे। यह पहली बार नहीं हुआ होगा जब तुम्हारे किरदार तुमसे दूर जा रहे होंगे, तुमने अपने किरदारों को तुम्हारे द्वारा चुनी गई राह छोड़ अपना रास्ता बनाते अनगिनत मर्तबा देखा होगा, तुम खुद भी यही चाहते होगे कि ये दोनो अपनी स्वतंत्र हसरतें लिये मंच पर विकसित हों ताकि तुम इनके जरिये अपनी कथा के सूत्र का संधान कर सको। लेकिन मुस्तकीम ने अनन्या का मुखौटा हटाया तो कुछ ऐसा हुआ जिसे तुम सहन नहीं कर पाये। वह क्या था तुम उसे अभी नहीं चीन्ह पाओगे। इस लम्हा तो सिर्फ तुम बिलबिला कर रह जाओगे, मुस्तकीम और अनन्या मंच पर कुछ अप्रत्याशित करते रहेंगे। तुम इस कदर पूरे दृश्य से उखड़ जाओगे कि मुखौटा उतर जाने के बाद मुस्तकीम और अनन्या के बीच हुये संवाद और उनकी क्रियाओं पर तुम्हारा जरा भी ध्यान नहीं जायेगा। तुम्हें कुछ सुनाई नहीं देगा, शायद तुम सुनना नहीं चाहोगे, तुम्हें कुछ दिखाई नहीं देगा, शायद तुम देखना नहीं चाहोगे कि मंच के पीछे जाने से पहले दोनो ने मंच पर चल रही कथा का, जो दरअसल तुम्हारी ही दी हुई कथा के प्रति विद्रोह था, किस तरह निर्वाह किया होगा। तुम्हारा ध्यान जब टूटेगा तब तक उन दोनो को मंच के पीछे अंधेरे में खोये काफी देर हो चुकी होगी।
****
उस रात तुम देर तलक नहीं सोये। जो कुछ दोपहर में मंचित हुआ था, उसे कागज पर उतारते रहे, अपने उपन्यास में ढालते रहे।
मैं तुम्हारे लिखे पर इस वक्त टिपण्णी नहीं करूँगा, न ही यह कहूँगा कि तुम मेरे जीवन को कितना और किस कदर थाम पाये, लेकिन यह जरूर कहूँगा कि तुम्हारे पास मेरे सिर्फ चार साल ही थे, उससे परे मेरे जीवन में क्या हुआ तुम उससे अनजान थे। हाँलाकि यह अनभिज्ञता यह साबित नहीं करती, नहीं करेगी कि तुम्हारी कथा कच्ची या कमजोर है। अगर ऐसा होता तो जिन लेखकों के सामने सारी समूची कायनात किसी दरिये की तरह बिखरी रहती है वे सभी महान उपन्यासकार हो जाते। मेरे सामने तो मेरा पूरा जीवन खुला हुआ था, मैं तो अपनी हरेक रग से वाकिफ था लेकिन फिर भी मैं अपनी कथा नहीं लिख पाया या शायद लिखनी ही नहीं चाही। कथा लिखने के लिये बेहिसाब दुस्साहस, छाती में दहकती आग, आँखों में सुलगता अंगारा चाहिये। अपनी हस्ती को नकारने का जुनून, अपनी वासना को बेनकाब करने की तड़प, खुद को कागज़ पर कतरा कतरा स्वाहा होते देखने का नशा हुये बगैर क्या कोई उपन्यास लिख सकता है?
इसलिये मेरे हमसाये, मैं तुम्हारे लिखे पर अभी कुछ नहीं कहूँगा। तुम्हें पूरा अधिकार दूँगा कि तुम मेरी कथा या अ-कथा को जैसा चाहो सुना सको, तोड़-मरोड़-मोड़, झिंझोड़ सको।
***
देर तलक लिखने के बाद तुम बाहर चले आये। सेमल के पेड़ तले अंधेरे में शॉल ओड़े खड़े कल्पना करते रहे कि पहाड़ के उस पार कौन रहता होगा। तुम्हारे कमरे में टेबिल लैंप की रोशनी अधखुली डायरी पर बिखरती रही। पिछले चार महीनो से तुम अपनी वर्णमाला भूलते जा रहे थे, तुम्हारे शब्द अचानक तुमसे छूटने लगे थे। तुम लिखना क चाहते, कागज़ पर ट उतरता। तुम लिखना प्रेम चाहते, कागज़ पर फरेब की आकृति बनती। तुम्हारी स्थिति उस इंसान की तरह हो गई थी जो नया नया कंप्यूटर सीखना शुरु करता है और सहसा पाता है कि कई सारे अक्षर इस कीबोर्ड में गुम गये हैं। कभी वह आई खोजता है, कभी ऐम, कभी उसे देर तक ओ दिखाई नहीं देता। मामूली से शब्द भी वह नहीं लिख पाता। वह एक दक्ष लेखक माना जाता है, लेकिन इन दिनों वह सुबह से शाम तक कीबोर्ड के सामने बैठा रहता है तब भी आरंभिक अक्षर तक भी नहीं खोज पाता, बदहवास सा स्क्रीन को ताकता रहता है, अपनी उँगलियों से निकलते गलत अक्षरों को देख छटपटाता है। एक ऐसा अभिनेता जो हर दृश्य में अपने संवाद भूल जाता है, मंच से बाहर निकल खुले बीहड़ में भटक जाता है।
कहीं तुम्हारे लेखकीय पूर्वज तुमसे, तुम्हारी लेखकीय नपुंसकता, फरेब से कुपित हो तुम्हारे शब्द उठाकर तो नहीं ले गये। तुमने यह कहानी सुन रखी थी कि किस तरह पूर्वज लेखक किसी निकम्मे युवा की नींद में आते हैं, उसके शब्दसंसार को उलटाकर उसमें से संपदा लेकर चले जाते हैं।
तुमने पितृदोष का सुना है, जब पितृ रुष्ट हो जाते हैं तो मनुष्य पर विचित्र किस्म की व्याधियाँ आ बरसती हैं। वह उनका प्रकोप शांत करने के लिये कई युक्तियाँ करता है। अगर कोई लेखक पितृदोष से ग्रस्त हो जाये तब किस किस्म का अनुष्ठान उसे करना पड़ेगा? कौन सा लेखकीय तीर्थ करना पड़ेगा? वह अपने पूर्वजों को कैसे मनायेगा? लेकिन लेखकीय पूर्वज कैसे रुष्ट होते होंगे? शायद जब कोई लेखक आसान रास्ता चुन लेता होगा या खुद को उन बंधनों का कैदी हो जाने देगा जो उसे शब्द से दूर ले जाते हैं।
तुम मेरे जीवन पर कुंडली मारे बैठे हो। इतनी दुर्लभ सामग्री, कच्चा माल तुम्हारे पास है। इस गृहयुद्ध का इतना प्रामाणिक व्यक्तिगत अनुभव किसी के पास नहीं है। इस सामग्री पर इस सदी का महानतम उपन्यास लिखा जा सकता है लेकिन तुम इस पर कायदे का एक अध्याय तक नहीं लिख पाये हो। इस अनुभव को साध न पाने की रचनात्मक समस्या क्या सिर्फ एक फॉर्म का अभाव है या तुम पितृदोष से ग्रस्त हो? ^कौन पितर हैं ये, आखिर क्यों कुपित हैं तुमसे?