प्रकाश के. रेका एक रूप यह भी है. पत्रकारिता, फिल्मपर लेखन के अलावा वे समय मिलने पर कविताओं के अनुवाद भी करते हैं. कुछ चुनिन्दा कविताएँ उनके अनुवाद में- मॉडरेटर
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1
जैसे कोई ज़रूरी ख़त लेकर आता है डाकख़ाने देर से
खिड़की बंद हो चुकी होती है.
जैसे कोई शहर को आसन्न बाढ़ की चेतावनी देना चाह रहा हो,
पर वह दूसरी ज़बान बोलता है. वे उसे नहीं समझ पाते.
जैसे कोई भिखारी पाँचवीं बार वह दरवाज़ा खटखटाता है
जहाँ से चार दफ़ा पहले कुछ मिला था उसे
पाँचवी बार वह भूखा है.
जैसे किसी के घाव से ख़ून बह रहा हो और डॉक्टर का इंतज़ार कर रहा हो
उसका ख़ून बहता ही जाता है.
वैसे ही हम आगे आकर बताते हैं कि हमारे साथ बुरा हुआ है.
पहली बार बताया गया था कि हमारे दोस्तों का क़त्ल किया जा रहा है
दहशत की चीख़ थी
फिर सौ लोगों को क़त्ल किया गया.
लेकिन जब हज़ार क़त्ल किये गये, और क़त्लेआम की कोई इंतेहा नहीं थी
ख़ामोशी की एक चादर पसर गयी.
जब बुराई बारिश की तरह आती है, तो कोई भी नहीं चिल्लाता 'रूको'!
जब अपराध ढेर में तब्दील होने लगते हैं, तो वे अदृश्य हो जाते हैं.
जब दुख असहनीय हो जाते हैं, चीख़ें नहीं सुनी जातीं.
चीख़ें भी बरसती हैं गर्मी की बारिश की तरह.
- बर्तोल्त ब्रेष्ट
2
तुलना की इतिहास ने
अपनी व्यापकता की
तुम्हारे दुखों के परिमाण से.
तुम्हारे दुख उससे कुछ अंगुल बड़े थे.
समंदर ने मापना चाहा
गहराई तुम्हारे घावों की,
अपनी गहनता के बरक्स.
चीख पड़ा वह
डूबने के भय से उनमें.
- शेरको बेकस, कुर्दी कवि
3
मेरे काँधे पर धरी इस छोटी गठरी में,
ढो रहा हूँ क़सून पहाड़ से भी बड़ा सवाल.
दमिश्क़ का दरवाज़ा बंद है और वहाँ पहरेदारी है;
शहर ने अपना दिल कहीं और रख दिया है, पहुँच से दूर.
ख़ुदकुशी करने वाले लड़के ऊन के गोले छोड़ गए हैं;
मैं अपना दरवाज़ा बाँध रहा हूँ, मरे हुए लोगों के लिए स्वेटर बुन रहा हूँ, थोड़ा रुको.
-नूरी अल-जर्राह, निर्वासित सीरियाई कवि
4
अखरोट का पेड़ / नाज़िम हिकमत
मेरा सर घुमड़ता हुआ बादल है, भीतर-बाहर मैं समुद्र हूँ.
मैं गुलख़ाना बाग़ में अखरोट का एक पेड़ हूँ,
गाँठों और दागों वाला एक पुराना अखरोट का पेड़.
तुम यह नहीं जानते और पुलिस को भी इस बात का पता नहीं.
मैं गुलख़ाना बाग़ में अखरोट का एक पेड़ हूँ.
मेरी पत्तियाँ चमकती हैं पानी में मछली की तरह,
मेरी पत्तियाँ लहराती हैं रेशमी रुमाल की तरह.
एक तोड़ लो, मेरे प्रिय, और अपने आँसू पोछ लो.
मेरी पत्तियाँ मेरे हाथ हैं- मेरे पास लाख हाथ हैं.
इस्तांबुल, मैं तुम्हें छूता हूँ लाख हाथों से.
मेरी पत्तियाँ मेरी आँखें हैं, और जो मैं देख रहा हूँ उससे क्षुब्ध हूँ.
मैं तुम्हें देखता हूँ, इस्तांबुल, लाख आँखों से
और मेरी पत्तियाँ धड़कती है, लाख दिलों के साथ धड़कती हैं.
मैं गुलख़ाना बाग़ में अखरोट का एक पेड़ हूँ.
तुम यह नहीं जानते और पुलिस को भी इस बात का पता नहीं.
-नाज़िम हिकमत
5
हर बार जब तुम्हें चूमता हूँ
लंबी जुदाई के बाद
महसूस होता है
मैं डाल रहा हूँ जल्दी-जल्दी एक प्रेम पत्र
लाल लेटर बॉक्स में
- निज़ार क़ब्बानी
6
धरती के नीचे मुझे कोई जगह दे दो, कोई भूलभुलैया,
जहाँ मैं जा सकूँ, जब चाहूँ,
बिना आँखों के, बिना छुए,
उस शून्य में, चुप पत्थर तक,
या अँधेरे की अँगुलियों तक।
जानता हूँ कि तुम या कोई भी, कुछ भी
उस जगह, या उस राह तक नहीं पहुँच सकता,
लेकिन मैं अपनी बेचारी कामनाओं का क्या करूं,
अगर उनका कोई मतलब नहीं, रोज़मर्रा की धरती पर,
अगर मैं ज़िंदा रह ही नहीं सकता बिना मरे, बिना उधर गए,
बिना बने चमकीली-उंघती प्रागैतिहासिक अग्नि की चिंगारियाँ
-पाब्लो नेरुदा
7
मैं रक़ीबों की तरह नहीं हूँ, अज़ीज़ा
अगर कोई तुम्हें बादल देता है
तो मैं बारिश दूँगा
अगर वह चराग़ देता है
तो मैं तुम्हें चाँद दूँगा
अगर देता है वह तुम्हें टहनियाँ
मैं तुम्हें दूँगा दरख़्त
और अगर देता है रक़ीब तुम्हें जज़ीरा
मैं दूँगा एक सफ़र
- निज़ार क़ब्बानी
8
प्रेम में पड़ा पुरुष
कैसे कर सकता है पुराने शब्दों का प्रयोग?
प्रेमी की इच्छा करती स्त्री को
क्या भाषा और व्याकरण के विद्वानों की शरण लेनी चाहिए?
कुछ नहीं कहा मैंने
उस स्त्री से जिसे मैंने चाहा
जमा किया
प्रेम के सभी विशेषणों को एक संदूक में
और भाग गया सभी भाषाओं से
- निज़ार क़ब्बानी
9
दुखी मेरे देश,
एक पल में
बदल दिया तुमने प्रेम की कवितायें लिखने वाले मुझ कवि को
छूरी से लिखने वाले कवि में
- निज़ार क़ब्बानी
10
हाइकू के महान कवि बाशो की रचनाओं के अनुवाद
1.
कब्र को कंपाती
विलाप करती मेरी आवाज़
पतझड़ की हवा
2.
साँझ-सबेरे
कोई करता है इंतज़ार मात्सुशिमा में
एक तरफ़ा प्यार
3.
तुम नहीं आओगे देखने
अकेलापन? बस एक पत्ता
किरी के पेड़ का
Prakash K Ray
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