Quantcast
Channel: जानकीपुल
Viewing all articles
Browse latest Browse all 596

विभाजन की त्रासदी और फिल्म 'मैंगो ड्रीम्स'

$
0
0
हाल में ही पटना फिल्म फेस्टिवल में फिल्म 'मैंगो ड्रीम्स'का प्रदर्शन हुआ. फिल्म की काफी सराहना हो रही. इसी फिल्म पर एक टिप्पणी सैयद एस. तौहीद ने लिखी है- मॉडरेटर
-------------------------------------------------------------------------------------------

देखी.ब्रिटिश फिल्मकार जॉन अपचर्च के निर्देशन में बनी यह फिल्म काफ़ी सराहना बटोर रही.विभाजन की त्रासदी कथा के केन्द्र में है.एक व्यक्ति की अपनी जड़ों की ओर यात्रा है.पीडा कि क्यों ज़मीन पर खींची रेखाएं इंसानियत से बढ़कर हो गई? दो समुदायों के बीच का कड़वा इतिहास है.मीठी एकरूपता है.एक दूसरे के प्रति स्नेह व सम्मान तत्व हैं.ऑटो ड्राइवर सलीम व डाक्टर अमित बहुत भले लोग हैं,आम इंसानों की तरह. इतिहास व राजनीति बीच बीच में मनमुटाव का कारण बना.जिस तरह हम लोग तत्वों के हांथो कठपुतली बना दिए जाते हैं.यह दोनों भी इन शक्तियों द्वारा सताए हुए हैं. फिल्म बड़ी शिद्दत से रेखांकित कर गई कि इंसानियत से ऊपर कोई धर्म या राजनीति नहीं. जॉन की फिल्म हमें एक यात्रा पर ले जाती है.डाक्टर अमित की यात्रा केवल उनकी नहीं,बल्कि सलीम की भी यात्रा है.अनुभवों की यात्रा है.मुश्किलों के विरुद्ध मानवीय सम्वेदनाओ की विजय यात्रा है.

भूलने की बीमारी से पीडित डाक्टर अमित (रामगोपाल बजाज ) सब कुछ भूल जाने से पहले खुद को एक बार फिर से रिविजिट करना चाहते हैं.अतीत की यादों को फिर से जीना चाहते हैं.बेटा अभि(समीर कोचर) की सलाह आराम करने की सलाह को किनारे करते हुए एक दिन घर से निकल जाते हैं.सलीम नाम का ऑटो चालक (पंकज त्रिपाठी ) उनकी इस यात्रा का सहयात्री बनता है.

कभी डाक्टर अमित ने सलीम के बच्चे की जान बचाई थी,आज उस इंसानियत को लौटाने का अवसर था.सलीम बुजुर्ग हो चले डाक्टर का खूब साथ निभाता है.अहमदाबाद से शुरू हुआ सफ़र कई मकामों से होते हुए अपनी मंजिल को पहुंचता  है.डेरा नानक का वो हिस्सा,वो जगह जो अब पाकिस्तान में पड़ता है.बंटवारे ने जमीं पर सीमाएं ज़रूर खींच दी थी,लेकिन दिलों को नहीं बांटा जा सकता है.अमित प्रेम की उन्ही  धड़कनों को पकड कर वापस अपनी जड़ों की ओर आए थे. सरहद पार खोये हुए कल से मिलने आए थे. बचपन की यादों का पीछा करते हुए अमित वहां आ पहुंचे जहां कि अब पाकिस्तान पड़ता है.

देखने आए थे अपना गांव..खुदा ने बिछडे भाई (नसीरूद्दीन शाह )से भी मिला दिया.अपने भाई अभय को जिंदा देख डाक्टर अमित जिंदगी की सबसे खूबसूरत पल से गुज़र रहे थे.अमित को बचपन की एक याद ताउम्र सताती रही थी कि उनकी बातों ने बचपन में उनसे भाई छीन लिया था.बाग में आम तोड़ने की घटना से जुड़ा एक दुस्वपन था दरअसल.

किरदारों बीच संवाद कथा को दिशा देते हैं.कथानक ने हालात से सम्वाद निकाले हैं.स्वाभाविक जो हो सकता था वही,आरोपित करने की कोशिश नहीं की गई. सलीम -डाक्टर अमित बीच हुए वन टू वन सम्वाद में कथानक की कई परते सामने आई.फिर भी समापन तक आखरी पड़ाव के लिए उत्सुकता ख़त्म नहीं होती.सफ़र को अंतिम तक फोलो करने से खुद को रोक नहीं सकेंगे आप. भला कोई अपनी ही यात्रा को भी अधूरा छोड़ता है क्या ! जॉन अपचर्च की mango dreams हम सब की यात्रा है. पात्रो का संघर्ष कथा का संघर्ष हो जाए तो रूची बढ़ जाती है.सलीम -डाक्टर अमित के दरम्यान महज़ चालक-सवारी का फॉर्मल रिश्ता नहीं.वो पल दो पल का सम्बन्ध
नहीं.परिचित -अपरिचित का नाता नहीं.दो मुकतलीफ  शख्सियतों की साझा यात्रा है.
खींची दीवारों पर सवाल उठाता विनम्र सत्य है.मानवता की जीत में यकीं रखते हैं तो ज़रूर देखें. 

संपर्क-passion4pearl@gmail.com

Viewing all articles
Browse latest Browse all 596

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>