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Channel: जानकीपुल
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हिंदी सिनेमा की नई 'क्वीन'

कल घोषित सिनेमा के राष्ट्रीय पुरस्कारों में 'क्वीन'फिल्म के लिए कंगना रानावत को सर्वश्रेष्ठ नायिका का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. प्रियदर्शनका यह लेख 'क्वीन'के बहाने सिनेमा की बदलती नायिकाओं को लेकर...

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जेंटलमैन लेखक थे विजय मोहन सिंह

विजय मोहन सिंह नहीं रहे. यह सुनते ही सबसे पहले मन हिन्दू कॉलेज होस्टल के दिनों में वापस चला गया. मेरा दोस्त आनंद विजय उनका नाम लेता था, कहता था बड़े लेखक हैं. उसके पिता के साथ उन्होंने कभी महाराजा...

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कमल जीत चौधरी की कविताएं

जम्मू-कश्मीर के कवि कमल जीत चौधरीकी आवाज हिंदी कविता में सबसे जुदा है. वे कविताओं में उन कोमल भावनाओं को बचाना चाहते हैं जो वास्तविकता में वायरल होती जा रही है. उनकी कविताएं हिंदी की उपलब्धि की तरह...

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मनोहर श्याम जोशी और सोप ऑपेरा के आखिरी दिन!

कल यानी 30 मार्च को हिंदी में अपने ढंग के अकेले लेखक मनोहर श्याम जोशीकी पुण्यतिथि है. देखते देखते उनके गए 9 साल हो गए. मैं उनके जीवन से जुड़े जाने अनजाने पहलुओं को लेकर एक किताब लिख रहा हूँ'जोशी जी की...

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इत्ती-इत्ती किताबें किसके लिए छपती हैं?

हिंदी में किताबों की दुनिया का विस्तार हो रहा है. यह बड़ी सुखद बात है. लेकिन कंटेंट को लेकर घालमेल बढ़ता जा रहा है यह चिंता की बात है. शिक्षाविद कौशलेन्द्र प्रपन्नका लेख इन्हीं चिंताओं को लेकर है-...

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क्या कैलाश वाजपेयी हिंदी के लिए 'आउट ऑफ़ कोर्स'कवि थे?

जब से कैलाश वाजपेयी के निधनके बारे में सुना तब से उनके बारे में लिखने की सोच रहा था. लेकिन क्या लिखूं? यह बड़ा सवाल था. हिंदी का विद्यार्थी रहा हूँ. यही पढता आया हूँ कि ‘प्रतिबद्ध’ और ‘कलाबद्ध’ ये दो...

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आलोचकों की लीला आलोचक जानें- मृणाल पाण्डे

वरिष्ठ लेखिका, लब्धप्रतिष्ठ पत्रकार मृणाल पाण्डेसे बड़े दिनों बाद एक लम्बी बातचीत पढ़ी. अंजुम शर्माके साथ इस बातचीत में मृणाल जी ने बड़े बेबाक तरीके से जवाब दिए हैं. 'नया ज्ञानोदय'में प्रकाशित यह बातचीत...

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प्रियंका दुबे की कहानी 'डेडलाइन'

यह सब हम सब लिखने वालों के साथ होता होगा, डेडलाइन का दबाव, लिखने न लिखने का उहापोह. प्रियंका दुबेने बहुत बारीकी से इस कहानी में इन्हीं भावों को बुना है. एक छोटी लेकिन एकदम अलग जमीन की कहानी- मॉडरेटर...

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मृणाल पाण्डे की कुछ कविताएं

मृणाल पाण्डे के उपन्यासों, उनकी कहानियों से हम सब वाकिफ रहे हैं. उनकी पत्रकारिता से हमारा गहरा परिचय रहा है. लेकिन उनकी कविताएं कम से कम मैंने नहीं पढ़ी थी. हमारे विशेष आग्रह पर मृणाल जी ने जानकी पुल के...

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डेढ़ सौ साल की कृति 'एलिस इन वंडरलैंड'

'एलिस इन वंडरलैंड'के डेढ़ सौ साल हो गए. इस कृति की अमरता के कारणों पर जानी-मानी लेखिका क्षमा शर्माका यह लेख- मॉडरेटर ===============हाल ही में बाल साहित्य से जुड़ी साहित्य अकादमी की गोष्ठी में एक वक्ता...

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दिबाकर बनर्जी की अब तक की सबसे कमजोर फिल्म है 'ब्योमकेश बक्शी'

फिल्म समीक्षक आजकल समीक्षक कम पीआर कम्पनी के एजेंट अधिक लगने लगे हैं. ऐसे में ऐसे दर्शकों का अधिक भरोसा रहता है जो एक कंज्यूमर की तरह सिनेमा हॉल में जाता है और अपनी सच्ची राय सामने रखता है. युवा...

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गंभीर और लोकप्रिय साहित्य के बीच कोई अंतर नहीं होता है!

हिंदी में लोकप्रिय और गंभीर साहित्य के अंतर्संबंधों को लेकर मेरा यह लेख 'पाखी'पत्रिका के नए अंक में प्रकाशित हुआ है- प्रभात रंजन ====================‘जोशीजी ने जमकर लिखने का मूड बनाने के लिए फ़ॉर्मूला...

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गंभीर साहित्य सृजन में पैसा कहां है- सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रतिष्ठित पत्रिका 'पाखी'ने लोकप्रिय साहित्य को लेकर एक ऐतिहासिक आयोजन किया है जिसमें लोकप्रिय धारा के प्रसिद्ध लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठकका इंटरव्यू प्रकाशित हुआ है. बातचीत विशी सिन्हाने की है. सच बताऊँ...

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एक अनुशासनहीन फेंटेसी है 'अँधेरे में'

पिछले साल मुक्तिबोध की मृत्यु की अर्ध-शताब्दी थी. इस मौके पर उनके ऊपर खूब कार्यक्रम हुए, थोक के भाव में उनकी रचनाओं को लेकर लेख सामने आये. लेकिन दुर्भाग्य से, किसी लेख में कोई नई बात नहीं दिखी. लगभग...

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गंभीर और लोकप्रिय साहित्य के बीच कोई अंतर नहीं होता है!

हिंदी में लोकप्रिय और गंभीर साहित्य के अंतर्संबंधों को लेकर मेरा यह लेख 'पाखी'पत्रिका के नए अंक में प्रकाशित हुआ है- प्रभात रंजन ====================‘जोशीजी ने जमकर लिखने का मूड बनाने के लिए फ़ॉर्मूला...

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क्या मीडिया समाज की नकारात्मक छवि बनाता है?

अभी हाल में ही वरिष्ठ पत्रकार राकेश तिवारीकी किताब आई है- 'पत्रकारिता की खुरदरी जमीन'. इस पुस्तक में उन्होंने बड़ा मौजू सवाल उठाया है कि आखिर मीडिया ऐसे समाचार ही क्यों प्रमुखता देता जिससे हमारे अंदर...

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'कोर्ट' : भारतीय सिनेमा का उजला चेहरा

सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म 'कोर्ट'हो और प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक मिहिर पंड्याकी लेखनी हो तो कुछ कहने को नहीं रह जाता है, बस पढने को रह जाता है- मॉडरेटर...

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नेताजी का सच और गुमनामी बाबा का मिथक!

गुमनामी बाबा नेताजी थे- इस बारे में सबसे पहले ‘गंगा’ नामक पत्रिका में पढ़ा था. बात 1985-86 की है. तब फैजाबाद में गुमनामी बाबा की मृत्यु हो गई थी और वहां के एक स्थानीय पत्रकार अशोक टंडन ने कमलेश्वर के...

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हृषीकेश सुलभ कथाकार हैं, क्रॉनिकल राइटर नहीं!

हृषीकेश सुलभके छठे कहानी संग्रह 'हलंत'की कहानियों को पढ़ते हुए यह मैंने लिखा है- प्रभात रंजन ========हृषीकेश सुलभ की कहानियों का छठा संग्रह ‘हलंत’ पढ़ते हुए बार बार इस बात का ध्यान आया कि संभवतः वे हिंदी...

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मीरांबाई की छवि और मीरां का जीवन

बड़ी चर्चा सुनी थी माधव हाड़ा की किताब ‘पंचरंग चोला पहर सखी री’की. किसी ने लिखा कि मीरांबाई के जीवन पर इतनी अच्छी किताब अभी तक आई नहीं थी. किसी ने इसकी पठनीयता की तारीफ की. बहरहाल, मैंने भी किताब उठाई तो...

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