बापू! देश का अंतिम जन अपने अंत की ओर बढ़ रहा है!
महात्मा गाँधीकी वतन वापसी के सौवें साल में उनके नाम यह मार्मिक पाती लिखी है दिल्ली विश्वविद्यालय के विद्यार्थी नंदलाल सुमितने- मॉडरेटर ===================प्यारे बापू, आपके वतन वापसी का सौवां साल है यह....
View Articleकुँवर नारायण की कहनियों में धंसते हुए
युवा लेखक मनोज कुमार पाण्डेयने यह लेख लिखा है हिंदी के वरिष्ठ कवि-कथाकार कुंवर नारायण की कहानियों को पढ़ते हुए- मॉडरेटर =====================कुँवर नारायण अपनी कहानियों की इकलौती किताब ‘आकारों के आसपास’...
View Articleभालचंद्र नेमाड़े के उपन्यास 'हिन्दू'का एक अंश
आज मराठी के प्रसिद्ध लेखकभालचंद्र नेमाड़ेको ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है. उनके प्रसिद्ध उपन्यास 'हिन्दू'का एक अंश, जो संयोग से किसान-खेती-बाड़ी करने वालों की दुर्दशा को लेकर है- मॉडरेटर...
View Articleयह साहित्य के भूकम्पोत्तर काल का आयोजन था!
बिहार में संपन्न हुए अखिल भारतीय कहा समारोह पर यह टिप्पणी पटना के युवा साहित्य प्रेमी, समीक्षक सुशील कुमार भारद्वाजने लिखी है. ईमानदारी से अपने अनुभवों को बयान किया है- मॉडरेटर...
View Articleअनुराग अन्वेषी की प्रेम कविताएं
आज कुछ कविताएं अनुराग अन्वेषीकी. कविताओं में इस तरह की ऐन्द्रिकता कम हो गई है इन दिनों जैसी अनुराग जी की इन कविताओं में दिखाई दी. कविताओं में आजकल बयानबाजी बढ़ गई है मन की कोमल अभिव्यक्तियाँ कम होती गई...
View Articleपता नहीं क्यों इधर दु:स्वप्न झूठे नहीं हो रहे हैं!
दिल्ली-मुम्बई जैसे महानगरों में कला संस्कृति का कारोबार बढ़ता जा रहा है लेकिन कलाकारों-संस्कृतिकर्मियों की अड्डेबाजी की जगहें कम होती जा रही हैं. मुंबई में ऐसा ही एक ठिकाना था समोवार कैफे, जिसके बंद...
View Articleदुख उतना ही गहरा हुआ जितना गहरा था प्रेम!
कहने को मृत्यु को लेकर कुछ नोट्स हैं, लेकिन जिंदगी के राग से गहरे सराबोर. मनीषा पांडेके इस लेखन को कविता कहें, डायरी कहें, नोट्स कहें या सब कुछ. असल में हर विधा की छाया है और एक नई विधा का उत्स भी. कई...
View Articleसेल्फी के जमाने में 'बॉलीवुड सेल्फी'
जब से फिल्म समीक्षक पी.आर. एजेंसी के एजेंट्स की तरह फिल्मों की समीक्षा कम उनका प्रचार अधिक करने लगे हैं तब से सिनेमा के शैदाइयों के फिल्म विषयक लेखन की विश्वसनीयता बढ़ी है. मुझे दिलीप कुमार पर लार्ड...
View Articleकविता एवं कला महोत्सव, शिमला में मिलते हैं !
साहित्य-कला उत्सवों के दौर में यह अपने तरह का पहला आयोजन है-कविता एवं कला महोत्सव, शिमला. लिटरेचर फेस्टिवल्स के दौर में बिना किसी प्रयोजन के यह आयोजन सहभागिता के आधार पर है. जून का महीना शिमला में पीक...
View Article“स्वतंत्रता” शब्द गुलामी से उपजता है!
आज सुबह एक अच्छी और सार्थक बातचीत पढ़ी. गीताश्रीहमारे समय की एक महत्वपूर्ण कथाकार हैं, पत्रकार हैं. उनकी यह बातचीत 'अर्य सन्देश'नामक पत्रिका में छपी है. बिहार झारखण्ड मूल की स्त्री कथाकारों पर केन्द्रित...
View Articleसांसद एक सामान्य व्यक्ति की तरह क्यों नहीं रह सकता- हरिवंश
प्रसिद्ध पत्रकार हरिवंशको राज्यसभा में आये एक साल से अधिक हो गया है. उन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया है. प्रस्तुति युवा पत्रकार निरालाकी है. आज उसकी पहली क़िस्त- मॉडरेटर...
View Articleभरम हैं रास्ते, चौराहे सत्य और नित्य हैं
कविताएं बहुत लिखी जा रही हैं- यह कहने का मतलब यह नहीं है कि अच्छी कविताएं नहीं लिखी जा रही हैं. आज भी ऐसी कविताएं लिखी जा रही हैं, नए कवि भी लिख रहे हैं, जिनमें कविता का मूल स्वभाव बचा हुआ है, झूठमूठ...
View Articleखूबसूरत और मज़बूत रिश्तों की खुशबू है 'पीकू'
'पीकू'एक ऐसी फिल्म साबित हो रही है जो हर देखने वाले को अपने साथ सफ़र पर ले जा रही है. किसी फिल्म की व्याप्ति का सबसे बड़ा प्रमाण यही होता है कि आम दर्शकों को भी वह कुछ लिखने, कहने को विवश कर दे. आक...
View Articleमंटो के जीवन और लेखन पर बनी फिल्म 'मुफ्तनोश'के 60 साल
सैयद एस. तौहीदफिल्मों के बारे में एक से एक जानकारी खोज निकालते हैं. मंटोके जन्म के महीने में 'मुफ्तनोश'नामक एक फिल्म के बारे में उन्होंने लिखा है जिसमें मंटो के जीवन को आधार बनाया गया है. बहुत दिलचस्प....
View Article'मम्मा की डायरी के बहाने'एक अलग तरह का प्रोग्राम
सभी मम्माओं-पापाओं को यह सूचित किया जाता है कि आज शाम 6.30 बजे इण्डिया हैबिटेट सेंटर के कैजुरिना हॉल में अनु सिंह चौधरीकी किताब ‘मम्मा की डायरी’ के बहाने कुछ पैरेंटिंग के अनुभवों को साझा करने-सुनने का...
View Articleयह शिक्षा के नए पंथ में ढलने का दौर है!
दक्षिणपंथ की सरकार जब भी केंद्र में आती है तब वह शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन करने में लग जाती है. एक बार फिर ऐसी आशंका लग रही है. युवा शिक्षाशास्त्री कौशलेन्द्र प्रपन्नका एक सुचिंतित लेख- मॉडरेटर...
View Articleकविताएं सीत मिश्र की
आज कविताएं सीत मिश्रकी. कविताओं में कच्चापन हो सकता है दिखाई दे मगर अनुभव सघन हैं. सोंधापन है भाषा में, अच्छी कवयित्री बनने की सम्भावना पूरी है. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर...
View Articleदिनकर की किताब 'लोकदेव नेहरु'के 50 साल
‘लोकदेव नेहरु’के प्रकाशन का यह 50 वां साल है. मुझे आश्चर्य होता है कि इस किताब की तरफ नेहरु की मृत्यु की अर्धशताब्दी के साल कांग्रेस पार्टी का ध्यान भी नहीं गया. जबकि यह दिनकर जी की सबसे अच्छी पुस्तकों...
View Articleहम ऐसी कुल किताबें काबिले-ज़ब्ती समझते हैं
वह एक भरपूर बौद्धिक शाम थी. सच बताऊँ तो जबसे हिंदी में सेलिब्रिटी लेखकों का दौर चला है, पौपुलर-शौपुलर का जोर बढ़ा है हिंदी के मंचों से जैसे बौद्धिकता की विदाई ही हो गई है. आप किसी प्रोग्राम में चले जाइए...
View Articleकाजी नजरुल इस्लाम के गाँव की खबर
लेखक संजय कृष्णने काजी नजरुल इस्लाम के गाँव, उनके जन्मस्थान के ऊपर यह अच्छा वृत्तान्त लिखा है. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर =======================क्रांतिधर्मी और विद्रोही कवि काजी नजरूल इस्लाम का गांव चुरुलिया...
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