पाठक की भूख को शांत करने वाला साहित्य वार्षिकांक 'दीप भव'
‘लोकमत समाचार’ की साहित्य वार्षिकी 'दीप भव'का इन्तजार बना रहता है. इसलिए नहीं कि उसमें मेरी रचना छपी थी. वह तो हर बार नहीं छपती है न. लेकिन पीछे 4-5 सालों से यह वार्षिकी हर बार निकल रही है. इन्तजार...
View Articleहँसी-मजाक में गंभीर सन्देश देती फिल्म है 'पीके'
कवयित्री अंजू शर्माने फिल्म 'पीके'पर एक सम्यक टिप्पणी की है. फिल्म के बहाने उसके आगे-पीछे उठने वाले सवालों से भी उलझती हुई चली हैं. एक पढ़ी जाने लायक टिप्पणी है. मेरे जैसे लोगों के लिए भी जिन्होंने अभी...
View Articleबीतता साल और हिंदी किताबों के नए ट्रेंड्स
हिंदी किताबों की दुनिया में पाठकों से जुड़ने की आकांक्षा पहले से बढ़ी है, इस दिशा में पहले भी प्रयास होते रहे हैं, लेकिन इस साल इस दिशा में कुछ लेखकों, प्रकाशकों ने निर्णायक कदम उठाये. जिसके बाद यह कहा...
View Articleसिनेमा, प्राउड फंडिंग और 'बेयरफुट टू गोवा'
सबसे पहले मेरी क्रिसमस. उसके बाद यह पोस्ट. जो लिखी है 'मसाला चाय'के लेखक दिव्य प्रकाश दुबेने. एक बात है मुझे तो आइडिया जोरदार लगा. आप भी पढ़कर देखिये कि कैसे प्राउड फंडिंग से सिनेमा बन सकता है और हम आप...
View Articleगिरिराज किराडू की नई कविताएं
गिरिराज किराडूमेरी पीढ़ी के उन कवियों में हैं जिनकी कविताओं ने मुझे हमेशा प्रभावित किया है. उनका अपना एक विशिष्ट मुहावरा है और शब्दों का संयम. आज उनकी कुछ नई कविताएं- प्रभात रंजन ========मिस्टर के की...
View Articleरामजी तिवारी की नई कविताएं
साल के आखिरी कुछ दिन बचे हैं. मैं कुछ नहीं कर रहा. कविताएं पढ़ रहा हूँ. जो अच्छी लगती हैं आपसे साझा करता हूँ. आज रामजी तिवारीकी कविताएं. उनकी कविताओं से हम सब परिचित रहे हैं. देखिये इस प्रतिबद्ध कवि की...
View Articleबातों-मुलाकातों में मनोहर श्याम जोशी
मनोहर श्याम जोशीकी किताब ‘बातें-मुलाकातें: आत्मपरक-साहित्यपरक’मेरे पास मार्च से है लेकिन इसके ऊपर लिख आज रहा हूँ. यही होता है जो लेखक हमारे सामने होता है हम उसी के ऊपर लिखते रहते हैं, शाबासी के लिए,...
View Articleबीएचयू के रस्ते बनारसी ठाठ के किस्सों की दुनिया है 'बनारस टॉकीज'
'जानकी पुल'पर साल की आखिरी पोस्ट किताबों की दुनिया की नई उम्मीद के नाम. सत्य व्यासका उपन्यास 'बनारस टॉकीज', जिसका प्रकाशन 7 जनवरी को होना है amazon.in की बेस्टसेलर सूची में 41 वें स्थान पर दिखाई दे रहा...
View Articleमैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूं हिंदी मुस्कुराती है
आज हिंदी के दुःख को उर्दू ने कम कर दिया- कल साहित्य अकादेमी पुरस्कार की घोषणा के बाद किसी मित्र ने कहा. मेरे जैसे हजारों-हजार हिंदी वाले हैं जो मुनव्वर राना को अपने अधिक करीब पाते हैं. हिंदी उर्दू का...
View Articleकलावंती की कविताएं
जानकी पुल पर साल की शुरुआत करते हैं कुछ सादगी भरी कविताओं से. कलावंतीकी कविताओं से. कलावंती जी की कविताओं में हो सकता है शिल्प का चमत्कार न दिखे, भाषा का आडम्बर न दिखे लेकिन जीवन में, जीवन के अनुभवों...
View Articleगाँव, विकास और रंगमंच
गाँव के रंगमंच को लेकर एक बड़ा रोचक और दुर्लभ किस्म का संस्मरण लिखा है युवा रंग समीक्षक अमितेश कुमारने. लम्बे लेख का एक छोटा सा अंश प्रस्तुत है. आप भी आनंद लीजिये- मॉडरेटर...
View Articleस्वामी विवेकानंद की जयंती पर एक प्रेरक किस्सा
आईआईटी से विज्ञान पढ़कर प्रचण्ड प्रवीर जब से गल्प की दुनिया में आये हैं तब से किस्सों की झड़ी लगा दी है उन्होंने. कहते हैं कि सारे देशी संस्थान विदेशी विज्ञान पढ़ाते हैं. इसलिए अब मेरी उनमें रूचि कम होती...
View Articleकिंब, कांगड़ी और मेवों का मौसम
लोहड़ी को आमतौर पर पंजाबी संस्कृति का त्यौहार माना जाता है. लेकिन इस लेख में लेखिका योगिता यादवने यह बताया है कि किस तरह लोहड़ी जम्मू की संस्कृति का भी अहम् हिस्सा रहा है. तो इस बार जम्मू से हैप्पी...
View Articleफौज़िया रेयाज़ की कहानी 'पिंक का कर्ज़'
फौज़िया रेयाज़बिलकुल आज की लेखिका हैं. आज के जेनेरेशन की सोच, भाषा, विषय- हिंदी में कहानियां कितनी बदल रही है यह उनकी कहानियों को भी पढ़ते हुए समझा जा सकता है. जैसे कि उनकी उनकी यह कहानी- मॉडरेटर...
View Articleअशोक वाजपेयी आज 74 साल के हो गए
अगर हिंदी का कोई गणतंत्र है तो वे उसकी राजधानी हैं. वे हिंदी के विकेंद्रीकरण के सबसे बड़े प्रतीक हैं. वे हिंदी के भोपाल हैं, पटना हैं, रायपुर हैं, जयपुर हैं, मुम्बई हैं नागपुर हैं. वे हिंदी की संकुचन के...
View Articleमुकेश आनंद की कविताएं
आज मुकेश आनंदकी कविताएं. मुकेश मूलतः विज्ञापन की दुनिया के एक सफल पेशेवर रहे हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी की पढ़ाई करके विज्ञापन की दुनिया में शिखर पर पहुँचने वाले बेहद कम लोगों में वे एक हैं....
View Articleसूखे केश रूखे भेस मनुवा बेजान
सुदीप्ति कम लिखती हैं लेकिन जब भी लिखती हैं, जिस विषय पर भी लिखती हैं कुछ नए बिन्दुओं की तरफ संकेत करती हैं, कुछ नए इंगितों को उठाती हैं. 'रंगरसिया'फिल्म पर उनका यह तब आया है जब फिल्म को लोग भूलने लगे...
View Articleबर्बाद जीनियस थे(हैं) ब्रजेश्वर मदान
ब्रजेश्वर मदानको मैं तब से जानता था जब डीयू में पढ़ते हुए फ्रीलांसिंग शुरू की थी. दरियागंज में 'फ़िल्मी कलियाँ'के दफ्तर में उनसे मिलने जाया करता था. वे उसके संपादक थे. मनोहर श्याम जोशी से जब बाद में...
View Articleयह हिंदी साहित्य का 'लप्रेक'युग है!
पहले सोचा था ‘लप्रेक’ पर नहीं लिखूंगा. कहीं रवीश जी नाराज न हो जाएँ, कहीं निरुपम जी नाराज न हो जाएँ लेकिन प्रेमचंद याद आ गए- बिगाड़ की डर से ईमान की बात न कहोगे. क्या करूँ कहता हूँ खुद को रेणु की...
View Articleप्रेमचंद की परम्परा बचेगी या लप्रेक की परम्परा चलेगी
'लप्रेक'एक नई कथा परम्परा की शुरुआत है. लेकिन हर नई शुरुआत को अपनी परम्परा के साथ टकराना पड़ता है, उनके सवालों का सामना करना पड़ता है. आज 'लप्रेक'के बहाने हिंदी परम्परा को लेकर कुछ बहासतलब सवाल उठाये हैं...
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